कल्याण भाग 7 | Kalyan Bhag 7

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Kalyan Bhag 7  by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

Read More About Hanuman Prasad Poddar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उत्तरखण्ड | +# संचत्सरदीप घ्तकी चिधि और महिमा + ] ज्रर सन नाणडनणणाणाणाणाणाणाणाएाणाएाणानणायणुायणएुतताााा्ततयायतातयतनााणागणणाणनणानणाणणण तीन ब्राह्मणोको दी नि्मन्त्रित करे । इनमेंसे एक कर्मनिष्ट एवं सपल्नीक ब्राह्मणकी पूजा करे |- चद्द ब्राह्मण शान्त दोनेके साथ ही विदेषतः क्रियावान्‌ हो । इतिहास-पुराणोंका शाता घर्मश) सटुल स्वभावका) पिठ्भक्त गुरुखेवापरायण तथा देवता-ब्राह्मणोका पूजन करनेवाला हो । पाद्य-अर्व्यदान आदिकी विधिसे वस्र अलंकार तथा आभूषण अर्पण करते हुए पत्नीसद्वित घ्राह्मणदेवकी भक्तिपूर्वक पूजा करके भगवान्‌ लक्ष्मीनारायणकों तथा बत्तीसदविति दीपकको भी तताम्रपाघमें रखकर घीसे भरे हुए घड़ेके साथ ही उस ब्राह्मणको दान कर दे । देवपें ] उस समय निम्नाड्ित मन्न्से परम पुरुष नारायणदेवका व्यान भी करता रहे-- अविद्यातमसा व्याप्ते संखारे. पापनादानः । ज्ञानप्रदों मीक्षदृश्र. तस्माइत्तो मयानघ ॥ पापरदित नारायण तथा ज्योतिर्मय दीप | अविद्यामय अन्घकारसे भरे हुए. संसारमें ठुग्दीं ज्ञान एवं मोक्ष प्रदान करनेवाले दो . इसलिये मैंने आज वुग्ददारा दान किया है |? फिर पूजित ब्राह्मणकों अपनी शक्तिके अनुसार भक्ति- पूर्वक दक्षिणा दे। अन्यान्य ब्नाह्मणोंको भी घृतयुक्त खीर तथा मिठाईका भोजन कराये । घ्राह्मणभोजनके अनन्तर सपनीक ब्राह्मणको वन पहनाये । सामग्रियोसदित झाय्या तथा वछड़ेसदित थेनु दान करे । अन्य घ्राह्मणोंको भी अपनी सामर्थ्यके अनुसार दक्षिणा दे । सुद्ददों स्वजनों तथा बन्धु-वान्वर्वोको भी भोजन कराये और उनका सत्कार करे ) इस प्रकार इस संवत्सरदीप ब्रतकी समाप्तिके अवसरपर महान्‌ उत्सव करे । फिर सबको प्रणाम करके विदा करे और अपनी तुटियोंके लिये क्षमा माँगि | दान घ्नत) यज्ञ तथा योगाम्याससे मनुष्य जिस फलकों प्राप्त करता है वद्दी फल उसे संवत्सरदीप ब्रतके पालनसे मिलता है । गो) भूमिसुवर्ण तथा विशेषतः गह आदिके दानसे विद्यान्‌ पुरुप जिस फठको पाता है वही दीपन्रतसे भी प्रास दोता है । दीपदान करनेवाला पुरुष कान्ति) अक्षय - + घन) शान तथा परम सुख पाता है । दीपदान करनेसे मनुष्यको सौभाग्य अत्यन्त निर्मल विद्या आरोग्य तथा परम उत्तम समद्धिकी प्राप्ति दोती है--इसमें तनिक भी संदाय नहीं है। दीपदान करनेवाला मानव समस्त झुभ लक्षणेसि युक्त सोभाग्यवती पत्नी) पुत्र पौच्र प्रपोज तथा अक्षय संतति प्राप्त करता है । दीपदानके प्रभावसे न्ाह्मणकी परम शान क्षत्रियकों उत्तम राज्य वैदयको घन और समस्त पट तथा झूदरकों सुखकी प्राप्ति होती है । कुमारी कन्याकों सम्पूर्ण शुभ लक्षणोंसे युक्त पति मिलता है । वह बहुत-से पुन्न-पोन्न तथा बड़ी आयु पाती है । युवती स्त्री इस ब्रतके प्रभावसे कभी वेघव्यका दुगख नहीं देखती । उसका अपने खामीसे कभी वियोग नहीं दोता । दीपदानसे मानसिक चिन्ता तथा रोग भी दूर दोते हैं । भयभीत पुरुष भयसे तथा कैदी वन्धनसे -छूट जाता दै । दीपन्रतमें तत्पर रददनेवाला मनुष्य ्रह्महत्या आदि पा्पोसि निः्सन्देद मुक्त दो जाता है--ऐसा ब्रह्माजीका वचन है । जिसने श्रीदरिके संमुख सांवत्सर दीप जलाया दे उसने निश्चय ही चान्द्रायण तथा कृच्छू बर्तोका अनुष्ठान पूरा कर लिया । जिन्दोंने भक्तिपूर्वक श्रीइरिकी पूजा करके संवत्सरदीप ब्रतका पालन किया है वे धन्य हैं । तथा उन्होंने जन्म लेनेका फल पा लिया । जो सलाईसे दीपकी यत्तीको उकसा देते हैं वे भी देवदुर्लभ परमपद- को प्राप्त दोते हैं । जो लोग सदा ही मन्दिरके दीपमें यथाशक्ति तेल और वत्ती डालते हैं वे परम घाम- को जाते हैं । जो लोग बुझते या बुन्ने हुए दीपको खयं जलाने में असमर्थ द्दोनेपर दूसरे छोगोसे उसकी सूचना दे देते हैं वे भी उक्त फठके भागी दोते हैं । जो दीपकके लिये थोड़े-थोड़े तेठकी भीख मॉगकर श्रीविष्णुके संमुख दीप जलाता है उसे भी पुण्यकी प्राप्ति होती है । दीपक जलाते समय यदि कोई नीच पुरुप भी उसकी ओर श्रद्धासे हाथ जोड़कर निद्दारता है तो बद्द विष्णुघाममें जाता है । जो दूसरोंको भगवान्‌के सामने दीप जलानेकी सलाद देता है तथा स्वयं भी ऐसा करता है वह सब पार्पोसे सुक्त होकर विष्णुलोकको प्राप्त ोता है । जो छोग प्रथ्वीपर दीपनत्रतके इस माददात्म्यको सुनते हैं वे सब पार्षोसे छुटकारा पाकर श्रीविष्णुघामको जाते हैं । विद्वन्‌ मैंने तुमसे यह दीपन्रतका वर्णन किया है। यह मोक्ष तथा सब प्रकारका सुख देनेवाला प्रदास्त एवं मददाद ब्त है । इसके अनुष्ठानसे पापके प्रभावसे होनेवाले नेत्ररोग नष्ट दो जाते हैं । मानसिक चिन्ताओं तथा व्याधियोंका क्षणभरमें नाश दो जाता है। नारद इस ब्रतके प्रभावसे दारिद्रध और शोक नहदीं होता । मोदद और श्रान्ति मिट जाती है | हद -नणााााणाण




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now