पन्त और गुंजन | Pant Aur Gunjan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्र के चुनाव में उस छोटी श्रायु में ही अपनी मौलिकता मवभिह सॉकिद सगे थे वे तम्वाखू का घुआँ कागज का झसुम छादि ेसीयि न लिखते थे । उस समय की रचनाएं पंतजी ने नष्ट कर॑ ढाली हैं । रूदाचितू समकालीन पत्रो से कुछ मिल सकती हैं । हार उपन्यास की पारुडुलिंपि नागरी प्रचारिणी सभा काशी में सुरक्षित है । वीणा पतजी की कविताओं का पहला संग्रह वीणा नाम से प्रकाशित हुझा हे । जिस समय वे बनारस में अध्ययन कर रहे थे उस समय उन्होने यंगला के महाकवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर की चयनिका तथा शीतांजसि को पढ़ा । उसी समय पंतजी ने उन कविताओं की रचना प्रारम्भ की जिनका संग्रह वीणा में है । भ्रतः वे कवितायें रवि बाबू. की कविताओं से इधिक प्रभावित हुई है। इस संग्रह में कचि के ही शब्दों में दो एक रो छोड अधिकांश सब रचनायें १६१८-१६ की लिखी हुई है कवि मे इसे अपना दुधसुदा प्रयास कहा हे । परन्तु इससें कवि की सहानता के सव चिट्ठ बीजरूप से मोजूद हे । सौन्दर्य-रष्टि अरकृतिप्रेम और उसका उत्फुन्न वणन प्रस्तुत रूप के वणन के लिये छाम्स्तुत रूपो की योजना मसूरतिमत्ता तथा लाक्षणिकता इस संग्रह की कविताओ से भी सिलती है । कवि ने झपनी नश्रता दिखाते हुए इन रचनाओ को बिना व्याकरण बिना विचार तथा ताल-लय-रहित बतलाया है । परन्तु जिस संग्रह से प्रथम किरण का झाना रंगिनि जेसी सुंदर रचनाएँ भी हों यह इससे घुछ अधिक ही कहा जायगा यद्यपि इसमे भाषा सम्बन्धी झनेक दोप भी हैं परन्तु कवि ने इससे भापा-मार्जन का प्रयल्र भी ार- ग्भ कर दिया था जिससे खडी वोली शक्ति और शालीनता प्राप्त करने के माग॑ पर चल पड़ी ।




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