कबीर के धार्मिक विश्वास | Kabeer Kay Dharmic Vishwas
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.55 MB
कुल पष्ठ :
149
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( 5 ) कह कर भगवत्धकक््त नामक एक नई जाति का निर्माण कर लिया था जिसके कबीर उज्ज्वलतम रत्न थे । लेकिन हिन्दू आर मुसलमान कोरो तथा जुलाहा जातियों के बक्कर मे पड़ने वाले झ्राधुनिक युग के बौद्धिको ने उन्हें तके विततक के चक्कर में फमा कह एक विशेष जाति के बधन में बाधने का प्रयत्न किया है । तु ब्राह्मन मैं कासी का जुलाहा बुकड़ मोर गिश्नाना । इसी प्रकार कई बार उन्होंने श्रपने जुलाहा कहने में ही गौरव श्रनुभव किया श्रौर कही कहीं उन्होंने श्रपने को कोरी भी कहा है । मूलत दोनों ही वयन-जीवी हैं । झ्र।ज के बौद्धिक भ्रनुसंधित्पुझो ने यह भेद करने मे देर नहीं लयाई कि ये जुलाहे मुसलमान थे श्रौर कोरी हिन्दू । फिर भी कबीर दोनो में से किस वद्द मे हुए यह भगडा बना ही रहा । स्बामी रामानन्द के श्राशीवाँद से विधवा ब्राह्मणी की कोख से जन्म लेना तथा मुस्लिम नीरु जुलाहा दम्पति द्वारा उसका पो षित होना--दोनो ही प्रसिद्ध किवदन्तिया हैं । ग्रीचाय हूजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है--कबीरदास जिस जुलाहा जाति में पालित हुए थे वह एकाध पुदत पहले की योगी जैसी किसी श्राश्रम भ्रष्ट जाति से मुसलान हुई थी या झभो होने की राह में थी । यह कह कर उन्होंने योगी या जुंगी जाति को कोरी या जुलाहा से भ्रधिक महत्त्व प्रदान किया है ।. मुलत जो बात उन्होने कही है वह यह है कि हिंदू सस्कार नाथ पत्थियों के माध्यम से इन योगियो में नएएएएल्एल्एएए।।ए।ल्।एल्एल्ए।ए एएकएल्एएएल्एएएल्एए।ल्एल्एल्एएन एप नपटसवलसपलएएएएलटटआटय-जन कबीर प्रस्तावना पृष्ठ १.१
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