ऋषि दयानन्द के ग्रंथो का इतिहास | Rishi Dayanand Ke Grantho Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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''धट्टम चप्याय--भ्रमोच्छेदन « श्8६१ भ्रमोच्छेदन का रचना स्थान अमोच्छेदन प्रन्थ झापाढ़ कृष्णा २ गुरुवार सं० १६३७ वि० ( ९४ जून सन्‌ १८८० ) को फरु खावाद, से छापने के लिए भेजा था। देखो पत्रन्यप्दार एप्ठ र०२। इस वार स्वामी मी मददाराज वेश[ख शु० ११ ( २० मई १८८०) से 'झापाद कृष्णा दे ( ३० जूत' ८८० ) सके एक मास घारद दिन फर्स सा बाद रे थे । अतः यद प्रन्थ फरुखांबाद में दी रचा गया था 1 ही ऋषि केपररों में अ्मोच्छेदन का उल्लेख मदद्पि ने ापाढू कण २ शुरुवार सण १६३२४ के पत्र में लिखा दै-- “झाज रजिष््री करके राजा शिवप्रसादू का उत्तर यददी से रदाना करेंगे ।” पत्रन्यवहार पुन १६७ | अगले 'झापाद सुदि * स० १६३७ थि० के पत्र में पुनः लिखा हैं “दमने २४ वीं जून को सजा शिवप्रसाद का उत्तर भेजा था, २६ वा कोपहुँ 1 द्ोगा । भर वद्द भी पहली चअप्रेल 6 (१ जुलाई ) दा पांचवों तारीख अम्ल & (7 जुलाई ) तक छपके तैयार हो गया दोगा ।” पत्रव्यवद्दार प्रष्ठ र०१ । पुनः श्रगले 'मज्ञाव तिथि ( १० या है१ जुलाई सन्‌ १८८० ई०) के पत्र मे लिखा दै-- “२४ जून को सता शिवप्रसाइ का उत्तर इसने फरु खाद से तुम्दारे पास भेजा दिया था।” * ”” सना जी के जादू की पुस्तक हद के दरनद ८ दिन में छप कर तैयार दो.सकते हैं पर न मालूम 'झव तक क्यों नहीं तैयार हुए* । पतव्यवहार प्ष्ठ २०२ | इन पर्मा से ज्ञात होता दै कि श्रमोच्छेदन थापाद के छत में या उसके बाद छपा दोगा । इसका प्रथम सस्रुरण दमें देखने को नददं मिला । & यह पत्र रथ जून के वाद लिखा है अत यदां जुलाई चादिये।




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