साने गुरूजी | Saane Guruujii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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3 विदव के खले प्रांगण में मां को आकस्मिक मृत्यु के दुख से पंढरी जल्दी ही मुक्त हुआ । उसके मम में हमेशा यह विधार आता रहता था कि मां बेटे को खूब पढ़ाना चाहती थी । मां को याद करता पंढरी पुणे आया । कालेज में अपना नाम लिखाया ।.कभी बाहर से लाकर कुछ खा लेता तो कभी स्वयं अपने हाथों रसोई तयार करता और खा नेता । कभी-कभी उपवास भी करना पढ़ता । एकाघ बार दूसरों को पढ़कर अपन खर्च के लिए चार पसे इकट्ठढे करता । इस प्रकार कालेज का संघर्ष पूर्ण जीवन प्रारंभ टुआ । यह सोचकर कि काम करने का जो झवसर उसे प्राप्त हुब्रा है वसा अवसर बहुतों को कब मिलता है पढरी ने दस अवसर का भरपूर लाभ उठाने का निष्चय किया । पाठ्यक्रम में निर्धारित सभी पुस्तकों को तो वह पढ़ता ही था इसके अलावा यह भी जानता था कि दुनिया के बारे में जानकारी देने वाली पुस्तक पुस्तकालय में मिलती है । उसने उनका भी भरपुर फ़ायदा उठाने का निदचय किया । अंग्रजी संस्कृत तथा मराठी भाषा की सर्वेश्रेष्ठ पुस्तकों का उसने अध्ययन किया । सामाजिक समस्याओं के प्रति जागरूक करने वाले हरिनारायण आपटे के उपन्यास विवेकानन्द और रामती्थ जेसे चिन्तकों का चेतना प्रदान करने वाला साहित्य दर्शन की गम्भीरता का परिचय देने दाला श्री अरविन्द का साहित्य रवीन्द् नाथ ठाकुर की हृदयस्पर्की कविताओं टालस्टाय कालाइल रस्किन को विचार प्रेरक पुस्तकों को तथा लोकमान्य तिलक और महात्मा गांधी के लेखों को आत्मसात्‌ करने के लिए पंढरी बड़े मनोयोग से जूट गया । उसके मन में विचार आता कि पाइचात्य साहित्य को गोरव-गरिमा से अपने मराठी भाषा- माषी समाज को परिचित करना हमारा कर्तव्य है । इस प्रकार कौ उसके मन में बिकट लालसा थी--- जगत के सारे उच्च दिचार । हमारी भाषा में साकार ॥




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