केवल भोजन द्वारा स्वास्थ्य प्राप्ति | Keval Bhojan Dvara Svasthya-Prapti

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Keval Bhojan Dvara Svasthya-Prapti by कविराज हरनामदास - Kaviraj Harnamadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिका १७ मनुव्य-योनि सर्वे श्रेष्ठ कइलाती है । इसका शरीर, 'ात्मा, हृदय 'ौर सस्तिष्क परम पिता परसात्मा की 'छानोखी देन हैं । स्वास्थ्य पर दी हमारा जीवन निर्भर है और स्वास्थ्य ाधिक- तर उस भोजन पर भर है जो हम नित्य पने पेट में डालते हैं। अत: सोज़न की छोर श्त्यधिक ध्यान देने की छा- वश्यकता है । बड़े नगगें की काफी जन-संख्या बाजारों, होटलों या बोर्डिंग दाउसों में खाना खाती है । यदि इन स्थानों के भोजन पकाने वालों को 'झपनी नौकरी या झपने लाभ के सिवाय कुछ भी छौर सोचने का छवकाश मिले और वे छापने भारी कतंव्य का अजुभव करें तो उन्हें मालूम होगा कि देश की दशा और जाति की बहुत सी कीमती लानों और उनके स्वास्थ्य की रक्षा के वे जुम्मेदार हैं पर वे इस 'ओर '्यान ही नहीं देते । कई दिनों की बासी सब्जी, महीनों का पुराना छाटा, बरसों का. पुराना मिलावटी घी, एक २ करके खाने वालों की रग रग में विष का सब्चार करते रहते हैं । भारतवर्ष में पुश्त के बाद पुश्त कमजोर '्ौर छोटे कद की दोती जाती है। यूरोप, नापान छौर अमेरिका इत्यादि स्वतन्त्र देशों में पुश्त के बाद पुशंत ताक़तवर 'छौर उँचे क़द की होती जा रही 'है। वहाँ की सरकार एक हत्यारे (क्रातिल) को माफ़ कर सकती है, पर खाने पीने के पदार्थों में किसी प्रकार की मिलावट करने वालों को, खराब चीज पकाने वालों को साफ़ नहीं करती । क्योंकि हृत्यारा एक प्राणी को मारता है परन्दु खाने वाली चीजों में मिज्ञावट यथा अन्य किसी प्रकार की खराबी करने वाला सारी जाति का वध करता है। वहां सरकार की छोर से भोजन-साम्ओ्री और स्वास्थ्य के सम्बन्ध में छुःन बोन करने वाले श्औौर जनता को अपनी नेक सलाह से लाभ पहुँचाने वाले विभाग बने हुए हैं, जिन पर प्रतिवर्ष लाखों पौंड




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