संत वाणी | Sant Vani

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Sant Vani by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३५६ नाम काम बिहीन पेखत घाम हूं नहीं जाहि | सवे सांग सचंत्र मान सदव मानत ताहि॥ एक मूरति छनिक दर्सन कीन रूप छनेक । खेल खेल भखेल खेलन झंत को फिरि एक ॥८१९॥। देव मेव न जानदी जिद्द चेद्‌ छर कतेबः रूप रंग न जात पात्र सु जानई किह जेब ॥ -तात मात न जात जा करि जनम मरने सिद्दीन 1 क्र बक़ फिर चतुर 'चक मानही पुर तीन ॥८२॥। लोक 'चउदद्द के बिखें जगु जापही जिह जाप । आदि देव छान्ाद मूरति थापिछों सबे जिह थाप ॥ परम रूप पुनीत मूरति पुरनि पुरख श्रपार । सब विस्व रघयो सुयंभव गढ़न भंजन द्वार ॥प८रे। काल हीन कला संजुगति श्रकाल पुर्ख झदेस 1 घम घाम सुभम रहत झमभूत झलख अमेस ॥ झंग राग न रंग जाकदि जात पातन नास | गर्भ गॉजन दुस्ट मंजन मुक्त दायक काम ॥1८४॥। छा प रूप झामीक न उसतति एक पुरख श्रवधूत । गंभ गजन सब भजन श्ञांद रूप झसूत ह अंग दीन अ्मग झनामत एक पुरख श्पार । सब लायक सब' घाबक सब को प्रतिपार 1८४00 सब गता सब हंता स्व ते छानसेख । सब सास्त्र न लानददी जिद रूप रंग झरुरेख (| परम बेद पुरास जाकहि नेत भाखत नित । कोटि सिसृत्ति पुरान सास्त्र च झावई बहु चित ॥८६॥।




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