संत वाणी | Sant Vani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.58 MB
कुल पष्ठ :
76
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३५६
नाम काम बिहीन पेखत घाम हूं नहीं जाहि |
सवे सांग सचंत्र मान सदव मानत ताहि॥
एक मूरति छनिक दर्सन कीन रूप छनेक ।
खेल खेल भखेल खेलन झंत को फिरि एक ॥८१९॥।
देव मेव न जानदी जिद्द चेद् छर कतेबः
रूप रंग न जात पात्र सु जानई किह जेब ॥
-तात मात न जात जा करि जनम मरने सिद्दीन 1
क्र बक़ फिर चतुर 'चक मानही पुर तीन ॥८२॥।
लोक 'चउदद्द के बिखें जगु जापही जिह जाप ।
आदि देव छान्ाद मूरति थापिछों सबे जिह थाप ॥
परम रूप पुनीत मूरति पुरनि पुरख श्रपार ।
सब विस्व रघयो सुयंभव गढ़न भंजन द्वार ॥प८रे।
काल हीन कला संजुगति श्रकाल पुर्ख झदेस 1
घम घाम सुभम रहत झमभूत झलख अमेस ॥
झंग राग न रंग जाकदि जात पातन नास |
गर्भ गॉजन दुस्ट मंजन मुक्त दायक काम ॥1८४॥।
छा प रूप झामीक न उसतति एक पुरख श्रवधूत ।
गंभ गजन सब भजन श्ञांद रूप झसूत ह
अंग दीन अ्मग झनामत एक पुरख श्पार ।
सब लायक सब' घाबक सब को प्रतिपार 1८४00
सब गता सब हंता स्व ते छानसेख ।
सब सास्त्र न लानददी जिद रूप रंग झरुरेख (|
परम बेद पुरास जाकहि नेत भाखत नित ।
कोटि सिसृत्ति पुरान सास्त्र च झावई बहु चित ॥८६॥।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...