हम आर्यसमाजी क्यों बनें | Ham Aaryasamaajii Kyon Banen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १३ ] रक्षा का ही भार लेवें । जो खेती-बारी आदि कर सक वे अपना समय उसी में छगावें और अपना तथा दूसरों के भोजन का ही प्रबन्ध कर देवें। जो जूते अच्छे बना सकें वे जूते ही बनावें ओर उनकी रक्षा एवं उनके भोजन तथा अन्य आवश्यकताओं की पूति दूसरे कर देव । कोई सबके कपड़े ही धो देवें। इस प्रकार की सुव्यवस्था से किसी एक पुरुप के ऊपर अधिक भार न पड़ने से विद्या कछा विज्ञान की पर्याप्त उन्नति होकर संसार का कल्याण साधित होता है। यह सामाजिक जीवन की दूसरी महत्ता है। लोग कहेंगे अच्छी बात। समाज की उपकारिता तो हम समझ गये परन्तु हिन्दू समाज तो है दी मनुप्य की जो आवश्यकताएँ तुम बताते हो हिन्दू-समाज से भी पूरी होती है तो फिर हम आय्यसमाजी क्यों बनें ? हम कहते है कि आप आय्य होना तो स्वीकार पहले ही कर चुके और अब समाज की उपयोगिता भी आपने स्वीकार कर ही ढछी तब तो आप स्वयमेव आय्यसमाजी बन ही गये आपका दूसरा समाज रहा ही कौन ? जो लोग यह कहते हैं कि जो सुधार की बातें हैं हिन्दू समाज से ही करो अपने को अलग क्यों बनाते हो उनसे हमारा निवेदन है कि ये सुधार की बातें बतावेगा कौन ? यदि कहे कि जिसे सुधार का ज्ञान होवे तो हम कहते हें कि वेसे सुधारक यदि सामूहिक और संगठित रूप से प्रचार करें तो वह व्यक्तिगत प्रचार से अच्छा होगा या बुरा ? इसका उत्तर सिवा अच्छा के आप और कुछ दे ही नहीं सकते क्यों कि संगठन




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