शास्त्रवार्ता - समुच्चय | Shastravarta - Samucchay

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Shastravarta - Samucchay by बदरीनाथ शुक्ल - Badrinath Shukl

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ हरिभद्रसुरि-विरचित महान्‌ ग्रन्थाशि को देखे से भी इस कथन की पुष्टि होती है और साथ ही विक्रम के बाद साधिक ५०० वर्ष पश्चात्‌ पूर्वश्रुत का विच्छेद होने से आचोयदेव श्रीहरिभद्रसुरिजीके उपयुक्त समय का समर्थन होता है । [२]- आधुनिक विद्वानो का एक मत यह है कि श्रीहरिभद्रस्‌रि का जीवनकाछ वि. स. ७०७से ८२७ के बोच में था। जिनविजय नामके गृहस्थ ने “जैंनच साहित्य सशोधक' के पहले अडड, में 'हरिभद्रसुरि का समय निर्णय' शीपैक़ से एक विस्तृतनिवन्ध में इस मत को प्रमाणित करने का प्रयत्न किया हैं-इस का सांराश यह है कि श्रीहरिभद्वसूरि ने अपने ग्रन्थों में व्याकरणवेत्ता भर्तृहरि, बौद्धाचा्य घर्मेक्रो्तिं और मोमांसक कुमारिछ भादि अनेक्ष ग्रन्थकारों का नामशः उल्लेख किया है। जैसे अनेकान्तजयपताका के चतुध् अविक्रार की स्वोपज्ञ॒ टीकामें शब्दाथतलविद्‌ भर्तृहरिः! तथा धूर्वाचायें: घर्पार-घर्मक्रीरत्यादिभि; इस प्रकार उल्छेख किया है । शास्त्रवार्ता-समुच्चय के ?क्लोकाक २९६ की स्वोपन्न टीक़ा्में 'सूक्षबुद्धिना शान्तरक्षितेन' तथा ःलोकाडूः ८५ में आह च कुमारिछादि. ऐसा कहा गया है। इन चार आचार्यों का समय इस प्रकार प्रसिद्ध है-३ स. की ७ वीं शताब्दी में भारतप्रवासी चीनदेशीय इप्सिय ने ७०० 'लोकमित वाक्यपदीय' ग्रन्थ की रचना करने वाले भतृहरि की वि. स. ७०७ में गृत्यु होने की बात कही है। कुमारिछ का समय विक्रम की ८ वी शताब्दी का उत्तराध बताया जाता है। धर्मफीर्ति का भो नामोल्छेख इत्मिगने किया है इससे जिनविजय ने उसका समय इ स. ६३५-६५० के बीच मान लिया है। 'शालवार्त्ता० में जिस शाम्तरक्षित का नामोल्डेख है यदि वह ही तत्वसग्रह का रचयिता हो तो उसका समय विनयतोष भ्नाचार्य के अनुसार इ. स ७०५ से ७६२ इ. स. के बीच है। यहाँ एक बात पर ध्यान देने योग्य है कि तत्त्तसग्रह के टोकाकार कमलशीछ ने परिक्षकामें 'तथा चोक्तमाचार्यसूरिपादेः” ऐसा कह कर जिस सूरि का उल्छेख किया है उस सूरि को विनयतोषभझ्नचार्य ने तत्त्वसग्रह के इंगलिण फोरवर्ड में हरिमद्रयूरि ही बताया हैं । पीटरसन के रीपोर्ट के 'पञ्चसए! ऐसा पाठ वाढी गाथा के अधार पर उन्होंने हरिभद्र- सूरिजी का स्वगंवास वि स, ५३५ में माना हैं । किन्तु श्रीहरिभद्गसरिजी ने ही स्वर्य ज्ञाम्तरक्षित का नामोल्लेख किया हैं इस लिये कृगता है कि तत््वसम्रह पब्जिका में उल्कि- खित अचायेसूरि हरिभद्रसूरि न होकर अन्य होगे | इन 9 प्राचीन विद्वानों का समय विक्रमीय ८ वीं शताब्दी होने से जिनविजय ने श्री हरिभद्रसरिजी को ८ वीं शताब्दी के विद्वान माना हैं और ८ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में विशेषत' उनका अस्तित्व सिद्ध करने के छिए 'कुबलयमाला” के ग्रशस्तिपथ की साक्षी दी है वह पथ इस प्रकार है-




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