जर्मनी में लोक - शिक्षा | Jarmani Men Lok - Shiksha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( २७ )
अतपएय शअय शिक्षा के मूल गद्दरे पैठने लगे । अप अनियार्य्य
शिता के विरुद्ध फाई भी अपनी ग्रावाज़ न उठाता था, किन्तु
सभी की यह इच्छा दे। गई कि अनिवार्य्य शिक्षा अवश्य ही
दी जाय। इस समय शिक्षा में बडो तीन्न गति से उन्नति
हुई । किन्तु अर एक कमी प्रकट दाने खगी। इस समय
नये नये श्राविष्कार्ों द्वारा तथा उद्योग-धन्धों की बद्धि के
फारण बडे घड़े नगरो को मद्दत्य प्राप्त छोने सगा। उसी के
अजझुखाए खोगो की मानसिक तथा शारीरिक आवश्यकताएँ
भी बढ़ने लगीं, किन्तु उन आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा
का प्रवन्ध अय तक न द्वा पाया था। शिक्षको की न्यूनता
यनी दी हुई थी | अतएव अब इन चुदियां फी पूर्ति फी ओर
शिक्षा निपुण बिद्वानों का च्यान आकर्षित हुआ। इस समय
आवश्यकता हुई कि शिकत्ता पद्धति तथा उसके उद्देश
सम्याठुकूल परिवर्तित किये ज्ञाय। इन तमाम घुडटियाँफेा
दूर फरने के लिए एक श्रति विर्यात मल्लुम्य नेता बना।ये
चद्दी मद्याशय ' पेस्टलोजी ! थे, जिन््दोने शिक्षादिपय सें
महान फीर्ति प्राप्त फी हू । इन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा के उद्देशों
तथा पद्धति पर लेख लिखना शुरू कर दिये | इनके विचारा
के जनता ने बहुत पसन्द किया और उनकी पसिर्धि
चार ओर फेल गई | तब पशियन शिक्षा विमाग के गुण
प्राइक अधिकारियों ने वर्लिन नगए से उनके समीप कोई
आठ शिष्य सिजवाये । उनके भिजवाने का उद्देश यद्दी था कि थे
मदहाशय पेस्टलोजी से शिक्षा पद्धति का शान उपत्तब्ध करें।
थे सब शिक्तक बलिन से चलकर पेस्टालोजी के समीप पहुच
गये | पेस्टालेजी ने इस बात की तरबरदष्टि से समालाचना
करक उससे जनता के सम्पुय रफव | ओर बताया कि वास्तविक
न
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