विद्यापति : एक अध्ययन | Vidhyapati Ek Adhyyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विद्यापति-णीवन प्रसग 25 खआूर्स की पहचान इस दोह से हा जायेगी-- सुदर कर सूदर चरन, दइन्र सुसपति पाव, जनिकर निदा लोक मे सो पुनि मूर्ख कहाव । पावोल मानुप जनम का, पुण्य न सचित सेल, शुद्ध सुयश जनिकर न पुन, मूख कोटि मे गल 11 दीरेइबर के पुत्र चण्डेदवर पिला वी मत्यु के उपर:त हरिसिह देव के अधानमभी हुए और इ हें 'सधिविग्रहव” और 'मह॒या” की उपाधि मिली । व्यवह्यर रत्नाकर, इृत्य रत्नाकर, दान रत्नाकर, शुद्धि रत्नाकर, पूजा रत्नाकर, विवाद रत्वाकर, गहृस्थ रत्नाकर, राजनीति रत्माकर तथा शव मानसोल्लास इनके प्रसिद्ध ग्रय हैं। ये जैसे विद्वान ये देस ही वीर भी। इन्ही के प्रयत्नो से हरिसिंह देव ने नेपाल घाटी पर आधिपत्य किया । ये पशुपतिनाथ को स्पश् करने वाले प्रथम ब्राह्मण थे 1 देवादित्म के द्वितीय पुश्र घीरेश्वर के दो पुत्र हुए कीधि ठाकुर और जमदत्त ठाकुर। जयदत्त के दो पुत्र हुए ग्रोरीपति और गणपति। यही गणपत्ति ठाकुर ओोइनवारवशीय राजा गणेश्वर के मन्नी थे जिनके एक मात्र पुन्त कविकुल चूंडामणि विद्यापति ठाकुर हुए) गणपति ठाकुर का विवाह मातृवश की पजी के अनुसार बुधवारये मूलक श्रीधर मामवः अह्ण कया गांगो देवी से हुआ था जिनकी कोख से विद्यापत्ति जैसे कवि “रत्त का जम हुआ जिसको पुष्टि विद्यापतति के इस प्रचलित कथन से हो जाती है-- जस्मदाता मोर गणपति ठाकुर मिथिला देश कद वास, पंच गोडाधिय शिवसिह भुपति, कुंपां करि लैल निज प्रास । # 0७ द




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