तत्व मार्तण्ड | Tatv Martand

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Tatv Martand by प्रभूतानन्द सरस्वती - Prabhutanand Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( 'ढ ) लब्खित दोता है कि शिवजी ने जय सृष्टि उन्पक्नकरते के लिये ब्रह्मा ब्रिष्णु कौ वत्पन्न किया था सुप्टि न थी तो गाय और केतकी का बुद्ध कहा से आये' और कहा थे यदि पहिले ही से थे तो शिंवपुराण यतानेधाला उन्मत्त के समान था जो यद लिखा है कि सृष्टि रचना के लिये भह्मा घ विष्णु की उत्पन्न किया ओर ब्रह्मा का मिथ्यावादी होना आ्रदि अयुक्त बातों को लिखा है । पेवी भागपत में देवी हो के चह्मा विप्णु शिपर आदि की उत्पन्नकरनेयाली इस प्रकार से घर्णन किया हे कि जय देवी फो. जगत्‌ के ग्चने फी.इच्छा हुई तय उसने धाथ का पिंसा हाथ में एक छाला पंडा उससे, घहा को उन्पष्त किया ओर देपी ने दा कि मुझे त्‌ आगनी खी बनात्वू मेरे पति होडसमे कहा कि द॑ मेंरी माता हैं म॑ं तेरा' पति नहीं हो सकता इस कहने पर देवी फ्रोघ फर उसकी भस्म कर दिया फिर हाथ प्रिसकर दुसरे घार छाला से विष्णु को उत्पन्न किया उस से भी चैसा ही इच्चा प्रकट की उसने भी घेला हीं उत्तर दिया इससे उसके भी देवी ने भस्म कर दिया पफि7त पूर्च ही. के समान महावेझः फे। उत्पन्न करके अपनी इच्छा प्रकट की अर्थात्त्‌ महादेय के अपने पति होने की शाशा दी मद्दादेय ने कहा कि में; तेरे इस माता रूप के साथ तेरी थाज्ञा के पध्यम्ु सार भवृत्त नहीं ही सकता तू अन्य सख्री रूप को धांरणकर तथ देधी ने चैछा ही किया फिर मद्दादेय ने भस्म पडी हुई देक्षकर पूछा यह क्‍या हैं देधो ने कहा यह- तेरे दो भाई हे पहिले मेने दो लडके उत्पन्न फिये थे उन्होंने मेरी शाशा न मानी इससे भस्म कर दिया है मद्दादेव ने कहा इनको- मिला दे में श्रकेला पदा करूगा जप देवी मे जिल्ादिया तब परदादेयजी ने कहा.इनके लिये दा खिया और उत्पन्न कर तय देची ने दो खिया शोर उत्पन्न कीं तप्र तीनों ने,तीन, स्तिया के। प्रहण किया 1 इस दागंन में देवी भागवत यनाने याले की बुद्धि में उन्माद्‌ द्वोता निश्चत' दोता है क्येकि ज्ञय देचो ने अपने से उत्पन्न हुये पुत्री के इस कारण से भस्मः फर दिया कि उन्हींने माता के स्त्री वन्ा का उसके साथ, शोग नहीं किया तो इस से सिद्ध दे कि देवी ने माता के साथ भोग करना उचिन और छमं समझा ऐ इसी से पुत्रों को झाना दिया था जो अनुचित समभती तो पेखी आज्ञानः देती और पुत्रों के श्राशनुलाए न करने को अजुचित.न समझा तब उनके क्रोध से भस्म कर दिया इससे यह सिद्धान्त भी ग्राह्म है कि देवी भागयत के मानने चाल को देवीं की आशा व श्राशय श्रदयुमार माता को ख्री बनाने में कुल दोष नहीं दो सकता। जब देवी ने तीन पुत्री के वास्ते.तीत सो के रूप घारण किये अथवा तीन- स़रियां उःपक्ष को तब भी,जो त्तोम्रों छिया देखी द्वी फे-कप मानी ज्यये तो गाता ही से व्यमिचार करना सिद्धहोता देओर जो देघी से उत्पन्न त्तीन क्या समभी जायें तो यद्दित और भाई से मैथुप कर्म दोना सिद्ध दोता ऐे जो देशी. मशायत या निर्माता स्वस्थ चित्त होता ओर पेसे वर्णन के अर्धात्‌ मातः के




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