अर्थ समरसारम | Arth Samarsaaram

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Arth Samarsaaram by रामकृष्ण दास - Ramkrishna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिकी | संसद नहीं फरनी पडती है जो कुछ अच्छा धुत फल हो चटपद मादूम ; दोमाताह । और वह स्चा मिक॒ता है। कितने बड़े गीखकी बात है कि | एक छोटेसे अन्यर्म संसारका महोपकार करनेवाले बड़े बड़े काम भरेहुए हैं । यह सब्र कुछ होनेपर भी आजतक यह अन्य भाषारीका | साहति कहीं पकाशित नहीं हुआ है । - इस ग्न्थपर संस्कृत दो टीका म्राप्त हुई हैं । अयम भरतटीका है और दूसरी रामठीका है किन्हु इन दोनों उत्तम दीकारंके होने- परभी किसी किसी स्थलमें यह म्न्‍्य ऐसा अड्जाता है कि विद्वानोंको , भी इसके चलछानेमें कुछ श्रम करना पड़ता है।अत एवं विद्वानसे लेकर सर्वसाधारणपर्यन्त यह अन्य सबके उपयोगम आसके ऐसा होनेके 'िये श्रीमान्‌ सेठ खेमराज श्रीकृष्णदासजीके आग्रह और चीमूँ राजके आश्रित ज्योतिपरत्न प० झूंधालालजीकी अनुमतिसे मेंने इसकी कई एक हस्तलिखित प्राचीन मतियाँ एकत्र फरके संस्क्रवदीका और माषादीका सद्वित इसे तयार किया है । युद प्न्‍्थ सर्वसाधारणकी समझमें सरखतास आसके और इसका असछी आशय स्पष्टरपसे विदित होसके इसलिये इसमें फईप्रकारके उदाइरण, उपदेश, चक्र, अन्ययांक और दिप्पणी आदि संयुक्त फरके इसको स्वांगसुन्दर बनानेकी पूरी चेश फी है| हु अपफाज अम्यदेिकि “ ऑिषिकटआए 2 जेफफ़े अफ्यड़ा कसा सेठ खेमराजजीके भाग्यभास्करको उदित रक्‍्खे । आपने भारतीय॑ प्रन्थरत्नोंके अस्तितवकी रक्षाफे निमिच मुक्तहस्व धनव्यय फरनेमें पका प्रण फिया है । समरसार जैसे अप्राष्य अन्यरस्नोका सम्माप्त होना आप इीके सद्रिचारका फल है।




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