भारत के प्राचीन जैन तीर्थ | Bharat Ke Prachin Jain Tirth

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Bharat Ke Prachin Jain Tirth by रामकृष्ण दास - Ramkrishna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महावीर की विहार-चर्या ই ट्सके बाद महावीर ने ३० बर्ष तक देश-देशान्तस में बिधर হন তা अपने उपदेशासून से लन-समुद्ाय का उल्याश यरते हुए अपने सिद्धास्ता का प्रचार किया। अन्त में थे मम्किमपावा पतारे आर यहा चानुमास व्यतीत करने परे निय #स्तिपाल नामक गणराजा के पटयारी के दफ्तर ( रज़्सससा ) मेष णय णक परे वर्पाराल क तान मनि ग्रीन गय । चौथा महीना लगभग आधा बीननेकरा श्रा } दस नमय तातिः श्रमाव्रस्या ক গান माल महावीर ने निर्वाण लाभ किया | महार के निर्वाण पे समय काशी-क्रोशल न নী गन्न और नी लिच्छवि नामय अठार” सगराजा मीजूट ग्र उननि (+ ঘুষ ग्रबसर पर सर्वत्र ठीपफ जलासर महान उत्मब मनाया | महावीर वर्धमान ने विशर, अगाल ओर पृर्वीय उत्तरप्रदेश के तिन स्थाना को अपने विहार से पविन्न किया था, वे सव स्थान লা के युनीत तीय है | दुर्भाग्य से आन इन स्थाना में से बहुत कम स्थानों का ठीक टी पता लगता हैं, बहुत से तो पिछले अढाई हजार वर्षों म नाम शेप रू गये है। यदि बिहार बड्ढाल ओर उत्तरप्रदेश के उक्त प्रदेशा की पेंदल यात्रा फी जाय तो निम्सन्देह यात्रियों को अक्षय घुएय का लाभ हा और इससे सभवत बहत से সান पवित्र स्थानों फा पता चल जाय | ( १३ )




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