वेदांत रामजन्मतीर्थ | Vedanta Ramajanatirth

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Vedanta Ramajanatirth by रामसेवक पाण्डेय - Ramsevak Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२१ ) | नाचत्‌ को म्रेयते त्राहे यथा जञाणामहाशकम 1 हिला नूतन माघते तथान्यदेहधारणम्‌ ॥२०णा अथें--इस पीछे माता फे सामने जाकर दीन माता के धीरे २ समझाने सगे कि हे माता ! तुम शेष सत करे?! कान फिपके मारता है। जीव के अमर है सेः क्या मरता है? नहीं ते कहे! कौन मरता है? जैसे यहां घुराने कपड़े छेह नया कपहा लेग पहिनते हैं वैसे ही यह जीव एक के छेड़ दूसरे शरोर के चारण कण्ता है ॥ तयैव मानुप॑ देह त्यक्ता दिव्यहाशरिणः | स्वर्गें छोके विराजन्ते पितरों में तपोधना॥२१॥ अर्थ--चैसेही मनुष्य शरीर के छोड़ कर दिव्य शरोर धारण कर तपेधन, मेरे पिता स्व लेक में विराजमान हैं ॥ शोक जहीहि भगवध्मवंणव भूत्वा ज्ञाने यत्तस्व परिक्षितएव पत्युः स्व चांपि मुक्तिपदमाप्स्यसएव घीरा , , पत्तु: पंयेत्तिच बदन विरराम रामभाश्शा अर्थ--है माता ! भगवान्‌ फे भर कुक के शोक छोड़े । अपने पति मे सीसे हुए शान में ही यथ करे।। तुम भी बुहि- आम हो, पति फे मागे से मेक्नपद्‌ केश पायागों । ऐसा कह के परशुशमणी चुप हुए 1 इति न्रष्पक्तानशास्त्रे आऔीवाल्मीकिस्ुनिकूले जनऊ परशुरामसयचाद राजवधरामसबसूलाटलगुप्कूत भापादीशाएं चतुघ: सगः ॥शा




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