भारतपारिजातम् | Bharatpaarijaatam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है के .) ( सोराष्ट्र ) में श्रीकुमारी मनु गांधीजीके पास जाना चाहिये। राजकोट ( सोराष्ट्र ) के श्रीपुरुषोत्तम भाई गांधीजीने श्रीमनु बह्िनको सूचना दी कि मैं उनके पास जानेवाला हूँ। मैं महुवा पहुँचा । श्रीमनु बरहिन गांघीकों मिला । मैंने उनकी उस आलमारीको देखा जिसमें पू० बा और पू० बापूजीके अनेक संस्मरण भरे पड़े थे। श्रद्धा और मक्तिकी साक्षात्‌ मूति मनु बहिनने हर एक वस्तुके ऊपरसे तुलसी ओर पुष्प हटा-हटाकर मुझे दिखाना और उसका विवरण करना शुरू किया। यह कार्य बहुत बड़ा और बहुत पवित्र था। जगत्‌के एक महापुरुषका एक महान्‌ जीवन उस आहल्मारीमें संनिहित है। उनकी चरणपादुका है। उनके” चप्पल हैं जिनकी उन्होंने अपने हाथों मरम्मत की थी। उनकी टूटी-फूटी, सड़ी-गली शाल्का एक बहुत पुराना, छोटा सा ठुकड़ा है जिसे वह कभी शरीर टढाँकनेकों ओढ़ लेते थे, और जिसके मध्य भ्ागरमें उन्होंने अपने हाथों पैबन्द लगाया था । उनके हाथके कते हुए सूत हैं | उनकी दाढीके बाल भी थोड़ेसे वहाँ एक छोटी सी डब्बीमें सुरक्षित हैं। दो तीन कटे हुए मुदार नखके टुकड़े भी पड़े हैं। उनकी एकाध-घोती है। एकाध रुमाछ है। उनके कितने ही खाक्षरयुक्त पत्र हैं। श्रीवा की साड़ी है। और भी कितनी ही पवित्र वस्तुओंके साथ-साथ श्रीबा की वह पविचन्न दो चूड़ियाँ भी हैं जो चिताकी राखमेंसे ज्योंकी त्यों निक्छ आयी थीं। वह पाँच थीं। तीन श्रीदेवदास भाई गांधीके संग्रहालयमें हैं। इन सब अल्म्य दर्शनीय वस्तुओंके दर्शनके बाद मैंने उनके मुखसे बापूके नोवाखली के: इतिद्ृत्त कुछ सुने, कुछ भावनगर समाधारमें प्रकर्मशव डायरीके पन्नोंमें पढ़े । आँखें रो-रो पड़ती थीं। हृदय मचलता था ऋम्न .विहल होता था। मस्तिष्क घुमता था। जीम निर्व्यापार थी | भ्स्त महुबासे' बहुत कुछ मिलछा। मैंने वहाँसे आनेके बाद भी कितने ही प्रदन उनसे पत्रद्वारा पछे और निरन्तर तत्काल मुझे उत्तर मिलते रहे | वहाँसे ही में पोरबन्दर पू० बापूके स्मारक कीततिमन्दिर . देखने 'गया था जिसे सौराष्ट्र दानवीर श्रीनानजी भाई कालिदासने एक महान




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