पद्य प्रमोद | Padaya Pramod

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Padaya Pramod by जगन्नाथप्रसाद चतुर्वेदी - Jagannathaprasad Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ पद्म-प्रमोद ४ उन क्तोडार +*--क्कैन कपिल छप्पय समय-चक्रमें पड़े पतित हैं माने जाते | श्वानोंसे भी निम्न सदा हैं जाने जाते। अन्त्यज अधम निरूष्ट -रूप अजुमाने जाते। देनेको दुख इन्हें ठान बहु ठाने जाते ॥ है कतेब्य कर सकल, काय्ये समाज-सुधारका 1 आन्दोछन अति उचित हो, सफल अछूतोद्धारका ॥ परमेश्वर करुणानिधान हों सदय हमारे । भागे भय-तम, भाग्य-सूर्य हों उदय हमारे ॥ पुलकित हों जातीय प्र मसे हृदय हमारे । आज्ञाचे तो निकट अभिल्‍रंषित विजय हमारे ॥| रखना जीवित जाति है--तो आडम्बर जीण ता। छोड़े हिन्दू शीध्ष ही साप्राजिक संकीणता ॥ विभिन्‍नताका भेद-साव क्‍यों बढ़ता जाता । रंग शानका, विषम समोंपर चढ़ता जाता ॥ पण्डित पूज्य समाज मोहमें मढ़ता जाता ॥ अपना वह प्राचोन पाठ हो पढ़ता जाता। जाति समाज खदेशकी, नहीं दशा है देखता। या लखकर लोहा अगम अपरमस्पार न लेखता ॥ की ककना कल या कला ्




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