बूँद - बूँद | Boond - Boond

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Boond - Boond by शंकरलाल - Shankarlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अब तक नहीं अँधेरा भागा अब त्क नहीं अँधेरा भागा। दीपक प्रतिदिन सहस जलाते। भीतर के तम को हरने को। प्रेम-ज्योति अंतस उजियाते ।॥1 भीतर का अँधियारा गहरा। कव तुमने पहचाना इसको। सोमवती मावस की जणह। एक शरद-पूनम बन जाते।1 उल्का बनकर छिटके नभ से। पर पहुंचे भू तक भी कब तुम कितना अच्छा होता तप करा ध्रुव बनकर टि्मिटिम मुस्काते 11 खुद जल-जल कर भस्म हो गये। जैसे दावानल से जंगल। अग्निपुंज होना ही था तो। बूँद-बूँद : 25




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