अमर वाणी | Amar vani

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Amar vani by शंकरलाल - Shankarlal

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शंकरलाल - Shankarlal

Add Infomation AboutShankarlal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्रमर -चाणी न 9 = 2 = ज का जि मि का न क त की ०१४०७ साहसी, कतंव्यशील, और परिश्रमी व्यक्ति दी लद्मी को प्राप्त कर सकते हैं: । --डायडन । सकट के समय धीरज धारण करना ही मानो आधी लड़ाई जीत लेना है । --प्लांटस । डर =^ १ १ 1 # परमातमा मुझे वद्द आँख दे, जो सेंसार के सकल पदा- थो को प्रेम की दृष्टि से देखे, --वैद । वथ नि त गि भाग्य के भरोसे न रहना चाहिये । यह नि. श्चय समकना चाहिये कि शुण दी भाग्य है, वदी युवा पुरुप सेंसार में आगे बढ़ सकता है, जो जानकारी रखता हैं, और जो अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिये पूरा प्रयत्न करता है । -जाजं मूर । न्‌ दै २ ७६ < ५ प्रेम स्वग का रास्ता है । --टालस्टाय |. हि 1 ॥ 7 प्रेम मनुष्यत्तव का दूसरा नाम है -चुद्ध । भ नण ण १०.०६0 ७ ७०१०००५० ११४० ५०५.०५.०९.०५५ (00 अर ००५० ०१११ कज ज १७ ० न




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now