अर्थ-विज्ञान | Arth Vigyan

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Arth Vigyan  by नारायण शुक्ल - Narayan Shukla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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निकाय [रत की आधिक-अवस्था अच्छी नहीं । व करुपा- जनक और भयछ्र दे । करों का बोमक बढ़ता ही जा रहा है प्रथ्वी की उवेरा-शक्ति कम होती जा रही है व्यापार- व्यवसाय की शिक्षा का यथेष्ट प्रबन्ध न होने से देश की सम्पत्ति-वुद्धि के मार्ग में बाधायें आ रही हैं । हर मनुष्य की वार्षिक आमदनी ३०] से अधिक स होने पर भी समय के प्रवाह में बद कर लोग..बिलासिता की ओर भुकते जा रहे हैं । ऐसी दुरवस्था में पढ़े हुए। भारतवासियों के लिए अथेशास्र के. सिद्धान्त जानने और झपनी श्राधिक दशा सुधारने की बढ़ी ही. आवश्यकता है । अतएव पण्डिते सुक्तिनारायण शुक्क ने यदद पुस्तक लिख कर द्विन्दी-भाषा-माषी जनता पर बड़ा उपकार किया है । . सोर॑लेंड साइब उच्च पद्रथ सरकारीः कर्स्मचारी थे । इन ब्रान्तों में वे एक ऊँचे पद पर थे। खेंती के मदकमे के वे कत्तो और विधाता थे। विपन्न और सम्पन्न सभी - तरदद के . भारत- वासियों की आर्थिक अवस्था अथबा दुरवस्था उन्होंने अपनी आंखों देखी है । परन्तु देखी है सरकारी ऐनक लगा कर । प्रसिद्ध अथशास्री माशंल साइव के दिखाये हुए पथ के पथिक




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