कवित्तावली | Kavittawali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
20
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महि जष्टं अन्नं वसं फटे पुष्पमालं से है,
आस्न रजतं सोच पनि छत ` निये |
दीप पदत्रान गो' ' सुरगंधघित सुबस्वु द न,
विद्या-दान इन सोरहों ते बड़ पनिये ॥
स्यस्वकं अनेकपाद् रर अपराजि्दं भ,
बहुरूपं विरूपाक्ष अद्ुध्नं जा ये |
मारि सुरेश्वरं जयन्ते हैर दर-काल,
एकादश रद्र-भक्त' उर-पहें आ ये ॥३३।
दिशा, दिग्पाल और पंचत त
परेव म इन्द्रः आनेय में 'अगिनदेव',
दक्षिणं में 'यमराज' मित्र ! अनुम निये ॥
नेकुत्ये में 'नेक्ुत' औ परिचर्भ-'वरुणदैः ,
वायव्व पर वायु घट-पट वारो ज नय ।
उत्तर में 'घनपति” देकर? इशार्न कोन,
ऊपर विधाता नीचे विष्णुः उ आनिये |
छति जं अरम अनि नम मक्त भ
दस दिग्पार, पचतस्व पहचानिये । ३४)
दिन, मास भोर ऋतु
चेन बइमारवे में वसन्तः की बहार अवे,
जेठे आओ असारई 'ग्रीष्म'-दाइ दुखद। नेये |
सावनं जौ माद में ववक्ष भमोद देत,
सरद' कुआार जोर कार्तिक बखारि पे ॥
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