विद्यापति की पदावली | Vidyapati Ki Padavali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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परिचय ९, 'विसपी” गाँव २९३ लक्ष्मणाव्द में विद्यापति को दिया गया था । उस समय उनकी अवस्या लगभग ४५२ वप की होगी । अतः उनका जन्म गे १ लदमणाव्द में, या संवत्‌ १४०७ विक्रमीय ( स्‍सन्‌ १३५० ई० ) स होना सम्भव हे । इस कथन की पुष्टि पुर्वोक्त राजा गणेश्वर सिंह के दरवार में विद्यापति के बाने-जानेवाली बात से भी होती है। “कीतिलता” के अनुसार राजा गणेश्वर २५२ लक्ष्मणाव्द में परलोकवासी हुए थे । उस समय विद्यापति १०-११ व के रहे होंगे। तभी तो इनके पिता इन्हें राज-दरबार में लेजाते थे । चंश-विवरण विद्यापति मेधिल ब्राह्मम थे । इनका सूल “विसइवार' और आस्पद ठाकुर था । मेथिछों में पंजी-प्रथा का प्रचलन हैं ।. जितने मैथिल ब्राह्मण और कण कायस्थ हैं, सभी के नाम, पुदत-दर-पुर्त, एक पोथी में लिखे हुए हैं । इस पोथी को *पंजी” कहते हैं । र पंजी से पता चलता है कि “गढ़बिसपी” में कर्मादित्य त्रिपाठी नामक घाह्मण रहते थे। थे राजमंत्री थे । थे विद्यापति के चंदा के भादिपुरुष 'विष्णुश्वर्मा ठाकुर के पोते थे । कर्मादित्य के बाद इनके वंश में जितने महापुरुपों ने जन्म लिया, सभी तत्कालीन मिथिला के राजा दरार में उच्च पदों पर काम करते रदे--कोई राजमंत्री थे) कोई राजपंडित--किसी को “महामहत्तक* की उपाधि भाप्त हुई, तो किसी को “सान्घि-विद्याहिक' की 1 इनका वंश अपनी विद्त्ता बोर बुद्धिमत्ता के कारण उस समय मिधिला में बेजोड़ था । इनके वंश में कितने ही लेखक भौर कवि भी हो गये हूं । कर्मादिस्प के पोते वीरेदवर ठाकुर ने, जो नान्य-वंशी राजा शर्क्ट




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