सिरि अन्तगडदसाप्रो | Siri Antgadadsapro

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Siri Antgadadsapro by आचार्यश्री हस्तीमलजी महाराज -Acharya Hastimalji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रवम बरग, प्रथम प्रध्ययन] [हिन्दी छाया] छुरम्प कुबेर की नगरी के सदुश (११ [हिन्दी भ्रथ] लोक के समान एवं मन को अरफुल्लित करने वाली थी । उसकी दीवारों पर राजहस, चक्रवाव, सारस, हाथी, घोडे, मगर, मृग, प्रमुदित प्रौर प्रकीड़ित मगर, झादि पशु-पक्षियों एवं प्रन्य प्नेक साक्षात्‌ देवलोक तुल्य आधिया के चित्र बने पथ 1 विधिष्ट अवा- है घारण से युक्त होने से वह भभिरूुपा ले बट । थी झौर जिसके स्फटिक निमित दीवारी पर नत प्रतिबिम्ब सर्वेदा प्रतिफलित द्वोते रहने से, जो प्रतिस्या भी थी। सूत्र ५ उस द्वारिका नगरी के हल उस द्वारिकानगरी के वाहिर ईंगान र॑वतक नाम का एवं पवत था, बाहर ईशान कोछ में हि बरणुँन करके योग्य था। उस रैवतक पर्वत यहा ईवत्तक नाम का पर्वत था, पर नन्दनवन नामक एक उद्यान था, जो जो घर्णंन करने योग्य था । भी वणनीय था । उस उद्यान में सुरप्रिय उस रेवतक पर्वत पर नाम का एक यक्षायतन था, जो प्राचीन नन्दनवन नामक उद्यान था । था । वह उद्यान चारों भोर एक वन खण्ड से जो बर्सोनीय था, जिसमें सुरप्रिय नाम यक्षायतन था, जो प्राचीन था, जो एक चनखण्ड से घिरा हुआ था । (उसमें एक) श्रेष्ठ अशोक वृक्ष था यहां निश्चय करके (उस) द्वारिका में कुष्ण नाम के घासुदेव राजा रहते थे । थे महान्‌ हिमव त पर्वत को तरह भर्यादापालक थे * यहा द्वारिका में समुद्र विजय प्रमुख दस दशाह क्षर्थात्‌ पुज्यनीय पुरुष, घलदेव प्रमुख, धिरा हुआ था झौर उसमें एक थंप्ठ जाति का अशोक का वृक्ष था | उस द्वारिका नगरी में श्रीकृष्ण नाम के बासुदेव राज्य करते थे, जो हिमवान पर्वत की भांति मर्यादा पुरुषो- त्तम थे। उनके राज्य का बरेन कौणिक के राज्य के वणन की भांति समझना चाहिये।” (नगरियों एव राज्यों के घणन को विस्तार पूवक समभने को जिज्ञासा घाल्तों को भौप- पातिक सूत्र का भ्रवलोकन करना चाहिए ।) “ऐसी द्वारिका नगरी में समुद्र विजयजी झादि दस दशाह प्र्थात्‌ पुज्य पुरुष निवास करतेथे। महावीर कहे जाने वाले बलदेव




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