एम. ए. बना के क्यों मेरी मिट्टी ख़राब की ? | M.a.banake Kyo Meri Mitti Kharab Ki ?

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
M.a.banake Kyo Meri Mitti Kharab Ki ? by पं. छन्नूलाल द्विवेदी - पं. छन्नूलाल द्विवेदी - Pt. Chhannulal Dwivedi

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. छन्नूलाल द्विवेदी - पं. छन्नूलाल द्विवेदी - Pt. Chhannulal Dwivedi

Add Infomation About. . Pt. Chhannulal Dwivedi

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
क्यों मेरे मिट्टी खराब फी ९ श्ह्‌ ' पक्ष करेगा । 'छडफे फा -घर घसे भौर लडकी नैंदर में रेत ते यह फैसे देखा ज्ञायगा ? प्रेम देवी ने अपने सन में इस थात फी साठ चांच ली फि चाहे आकाश पाताल एक ऐ। साय पर माणिक अपनी स््री का सु'द नहीं देख सकेगा | । माणिफ चन्‍द भी अपनी हां भौर बहिन के खभात से सच्छी तरद्द परिचित था। रुशिक्षित माणिक अपने मन में भलो प्रकार समझता था कि उसकी विंयाहिता स्री की फ्या दशा द्वातो होगी । इसने ते अथर्जों की तरद अपने घर के। खर्त तुल्य बनाने फा विचार किया था। पर चह खयं यह नहीं , लिए सकता था कि मेरी ख्री के लांदिए भेजे, क्योंकि यह पघात ते हिन्दू धम् शाख फे पिझिद्ध है । जिसके साथ जिख्गी फाटनी है उस के साथ पात त्रीत फरने में, टुस घुस फी कहने झुनने में निर्लज़ता समझी जाती दै। फटदा, निल्‍ेस्, मा बाप फी भाक फटाने वाला द्वाता है। गेायिन्द्र चाहतों था कि जैसे बने चले चह फे। लड़के के पास 'बिदा फरें। पर जब वह प्रेम देवी फे आगे इसकी चर्चा करता तब चह छुद्र्त, येरिनी, वडिशांशूल, हेलो मेल्ली भीर सम्पन्धिये में बियाद भादि का ' घद्दाना कर के घात उडा देवो। बहिन चाहती थी कि भाई भाभो के न छुलाये ते अच्छा, क्योकि फिर वह जे दा चार झूपये वचा फर भेजता है शायद उसे भी चन्द्र फ़र दे। प्रेम देंधी के मन मैं कमी फमी पुत्र प्रेम उमड़ आता। घद सोचती फि चुत्र पञ०से खिखने की कम से तो आधा हैो। दी गया है, अन्न : भी पचता नहीं, “पढते पढते साँस फमजोर छहे। गयी हैं तथा मरी जबानी में चएसा रूगाना पडता है,, यदि अपने दाथ ही चूल्दा फूकेगा ता बच्ची खु्चीं भाँख की ज्योति भी जाती रहेगी। ध्यदि 'क्रिसी पे साथ रहेगा ते! अनेक से मेयने पड़ेंगे अतए्न




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now