बुद्धदेव | Buddhdev

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Buddhdev by शरत्कुमार राय - Sharat Kumar Raay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बुद्ध का वाल्यकाल और गाहंस्थ्य च् जीवों पर सिद्धार्थ के प्रेम रसने का अ्रच्छा परिचय उस समय की एक प्रसिद्ध कहानी देती है। कहते हैं कि एक दिन सबेरे वे राजभवन की फुलवाडो से टहल् रहे थे, उसी समय हसो का एक कुण्ड मधुर शब्द से श्राकाश-मण्डल को मुसरित फरता हुआ उनके माथे फे ऊपर से होकर डंडा जा रहा था। सहसा त्तोर लगने से आहत द्दोकर एक दस' उनके सामने धरती पर गिर पडा । सिद्धार्थ ने तुरन्त उस घायल हस का बडी मुल्लायमियत से गोद में लेकर उसके बदन से तीर निकाल लिया प्लरौर बडे प्यार से उसकी सेवा फरने लगे । तीर लगने से पत्ती को फैसा कष्ट हुआ द्वोगा, इसके परीक्षार्थ उन्होंने तीर फा अग्र भाग झपने हाथ में चुभाया। इसके बाद थे सजल्ल नेत्र से फिर उस हस की सेवा में छग गये। उनकी दया-भरी सेवा से वद्द पक्ती बच गया । इतने मे सिद्धाथे का सजातीय बन्घु देवदत्त उप्त उद्यान में आया। उसके प्रब्यथ सनन्‍्धान से ही दस तीरूपिए छोकर धरती पर गिरा घा, इसलिए उसने पत्ती लेना चाहा। सिद्धार्थ ने विनीत-भाव से फट्दा--मैं यह पत्ती किसी तरह छुमकी नहीं दे सफता। अगर यद्द मर जाता ता बेशक तुम इसे पाते । मरी सेवा से यह पक्तो जी उठा है, इसलिए झब इस पर मेरा ही अधिकार है।” हस पत्ती के लिए उन दोनों में खूब वादविवाद हुआ । झारिर प्रवीण व्यक्तियों की सभा में इसका विचार हुआ | उन्होंने कह्ा--'जो प्राय-




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