कथा राम की | Katha Ram Ki

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Katha Ram Ki  by शिव बरुआ - Shiv Barua

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दासी-1 दशरथ दासी-2 दशरथ दशरथ सुमन्‍्त : दशरथ : बुमन्त : : मुनि ऋष्यस्शग, कौशलपुर, कैकई-प्रदेश, और सुमित्रा देवी के दशरथ नागरिक : स्त्रियाँ: पुरुष : कथा कम का [| <।1 करना सुख सागर सब गुन आगर जेहि गावहिं श्रुति सता। सो भय हित लागी जन अनुरागी भय प्रगट थ्रीकंता ॥ : बधाई हो महाराज । महारानी कौशल्या ने पुश्र को जन्म दिया है। : प्रभु । आपकी कृपा । * बधाई हो महाराज 1 महारानी कैकई ने पुत्र को जन्म दिया है । दासी-3 : बधाई हो--बधाई । महाराज आपकी रानी सुमित्रा के दो प्रश्न हुए हैं । : महामंत्री । सुमन्त : : सुमन्‍्त जी । ब्राह्मणीं को उपहार भेंद किए जाएँ । राज्य के निर्धन बधाई हो महाराज । बधाई। परिवारों मे मेरे व्यक्तिगत कोप का सम्पूर्ण धन बाँट दिया जाएं। राज्य के समस्त अधिकारियो और कर्मचारियों का पारिश्रमिक बढ़ा दिया जाए। जो आज्ञा महाराज । और सुनो । मंदिरों में विशेष पूजा की जाएं। बंदियों को काराग्रह- से मुक्त कर दिया जाए। जो भाज्ञा । यहाँ सदेश भेज दिए जायें। [नागरिकों का प्रवेश ।] बधाई भइया । बधाई हो । भदया नाचो-गाओ | राजा के जममे हैं राजकुमार, < ५» सखी, संग-संग ताचो। ऐ राजा कै जनमे राजकुमार, ५ कि भेया हम-संग नाचो ५ [मंच एक पर प्रकाश, / गोत है जागिए कृपानिधान_ जानराय रामचन्द्र | जननि कहे वार-वार, भोर भयो प्यारे राजिव लोचन विसाल, प्रीति-वापिका मराल। ललित कमल-वदन ऊपर मदन कोटि वारे॥- बोलत खग निकर मुखर, मधुर करि प्रतीत सुनहु स्वजन, प्रान जीवन घनरु मेरे तुम बारे भनहें वेद बंदी झुनिवुंद सुत मागधादि बिरुद-बदन जय जय जय जयति कैट भारे।«




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