समता पर्व सन्देश | Samata Parv Sandesh

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Samata Parv Sandesh by श्री शान्ति मुनि - Shri Shanti Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आत्म ज्योति का सन्देश | [३ वाला लोकोत्तर पर्व है| जैन धर्म-दर्शन में इस पर्व का बहुत अधिक महत्त्व माना गया है। स्वय तीर्थंकर प्रभु महावीर ने इस पर्व की आराधना की थी ऐसा आगमो मे स्पष्ट उल्लेख मिलता है | यही कारण है कि जेन कहलाने वाले बच्चे- बच्चे मे पर्व के इन दिनों साधना के प्रति उमग उत्पन्न हो जाती है । अन्य पर्वो पर बच्चे मिठाइयों एवं खिलौनों के लिये रोते-मचलते है तो आज वे प्राय. माताओं से जिद करेंगे कि हम भी उपवास करेगे। “पयु पण” शब्द “परि” उपसमंपूर्वक “वस्‌” धातु से “अ्रन” प्रत्यय लग कर बना है । “पयु षण” का अर्थ है--आत्मा के समीप मे बसना । अनादि काल से हमारी आत्मा भिथ्यात्व एवं अज्ञान के महासागर मे गोते लगाती श्रा रही है--उसे किनारा नही मिला है । यह स्वभाव को भूलकर विभाव को ही अपना स्वरूप मान रही है और यही मिथ्यात्व एव विभाव दशा दुःख-द्वन्द्दो एव संक्लेशों का मूल कारण है । पपु षण-लक्ष्य स्थिरता का सन्देश वाहक : ये पयु षण के पर्व हमे मिथ्यात्व से सम्यक्त्व एवं विभाव से स्व-भाव में लाने का सन्देश लेकर उपस्थित होते है । पूरे एक वर्ष मे चित्त शुद्धि का यह सुन्दर अवसर हमें प्राप्त होता है । इन श्राठ दिनो मे हमारा प्रथम चिस्तन लक्ष्य स्थिरता का होना चाहिये । श्रीमद्‌ राजचन्दजी ने कहा है-- “हुं कौन छू क्याथी थयो, शु' स्वरूप छे मारू खरू इसी बात को मैने राजस्थानी मे आवद्ध किया है-- अरे सोच जरा इन्सान कठासू झायो है तू आयो है? अठे रहणो है दिन चार श्रठास्‌' जाणो है थने जाणो है ॥। आत्म-शुद्धि का पर्व पयु षण : बच्चुओ ! ये पर्व पयुंषण आत्म जागरण का सन्देश लेकर उपस्थित हुए है । इन आठ दिवसो मे आप को क्या-क्या करना है इसका चिन्तन करे आप उपवास, दया आदि तो अपनी-अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार करते है किन्तु इनके साथ-साथ अन्तर शुद्धि का लक्ष्य हो । पर्युपण में आत्मा से अलग नहीं हंटे--विभाव से अ्रलग हटकर स्वभाव मे रमण करे | आत्मिक उल्लास वृद्धिगत हो । श्राज प्रत्येक जेत के घरों मे उल्लास-उमग मिलेगा । बच्चे-बच्चे कहते है-- ये हमारे पर्व है, हम भी उपवास करेगे । पर्व पयुंषण जब भी आते हैं हम उन्हे मनाते है । किन्तु रूढि की तरह मना ले--वह पर्व मनाना नही है। एक व्यक्ति के चाय का नशा है। तीन वजी की चाय पीता है । नशे की परिपाटी की तरह पेठु षण सना ले और आत्म-शुद्धि, आत्मोथान नही होवे तो अफीम के नशे की उरह उल्लास है।इन दिनो में जीवन के उद्देश्य को ठीक से समझ ले । यही




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