समता पर्व सन्देश | Samata Parv Sandesh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
286
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)आत्म ज्योति का सन्देश | [३
वाला लोकोत्तर पर्व है| जैन धर्म-दर्शन में इस पर्व का बहुत अधिक महत्त्व माना
गया है। स्वय तीर्थंकर प्रभु महावीर ने इस पर्व की आराधना की थी ऐसा
आगमो मे स्पष्ट उल्लेख मिलता है | यही कारण है कि जेन कहलाने वाले बच्चे-
बच्चे मे पर्व के इन दिनों साधना के प्रति उमग उत्पन्न हो जाती है । अन्य पर्वो
पर बच्चे मिठाइयों एवं खिलौनों के लिये रोते-मचलते है तो आज वे प्राय.
माताओं से जिद करेंगे कि हम भी उपवास करेगे। “पयु पण” शब्द “परि”
उपसमंपूर्वक “वस्” धातु से “अ्रन” प्रत्यय लग कर बना है । “पयु षण” का अर्थ
है--आत्मा के समीप मे बसना । अनादि काल से हमारी आत्मा भिथ्यात्व एवं
अज्ञान के महासागर मे गोते लगाती श्रा रही है--उसे किनारा नही मिला है ।
यह स्वभाव को भूलकर विभाव को ही अपना स्वरूप मान रही है और यही
मिथ्यात्व एव विभाव दशा दुःख-द्वन्द्दो एव संक्लेशों का मूल कारण है ।
पपु षण-लक्ष्य स्थिरता का सन्देश वाहक :
ये पयु षण के पर्व हमे मिथ्यात्व से सम्यक्त्व एवं विभाव से स्व-भाव में
लाने का सन्देश लेकर उपस्थित होते है । पूरे एक वर्ष मे चित्त शुद्धि का यह
सुन्दर अवसर हमें प्राप्त होता है । इन श्राठ दिनो मे हमारा प्रथम चिस्तन लक्ष्य
स्थिरता का होना चाहिये । श्रीमद् राजचन्दजी ने कहा है--
“हुं कौन छू क्याथी थयो, शु' स्वरूप छे मारू खरू
इसी बात को मैने राजस्थानी मे आवद्ध किया है--
अरे सोच जरा इन्सान कठासू झायो है तू आयो है?
अठे रहणो है दिन चार श्रठास्' जाणो है थने जाणो है ॥।
आत्म-शुद्धि का पर्व पयु षण :
बच्चुओ ! ये पर्व पयुंषण आत्म जागरण का सन्देश लेकर उपस्थित हुए
है । इन आठ दिवसो मे आप को क्या-क्या करना है इसका चिन्तन करे
आप उपवास, दया आदि तो अपनी-अपनी शक्ति सामर्थ्यानुसार करते है किन्तु
इनके साथ-साथ अन्तर शुद्धि का लक्ष्य हो । पर्युपण में आत्मा से अलग नहीं
हंटे--विभाव से अ्रलग हटकर स्वभाव मे रमण करे | आत्मिक उल्लास वृद्धिगत
हो । श्राज प्रत्येक जेत के घरों मे उल्लास-उमग मिलेगा । बच्चे-बच्चे कहते है--
ये हमारे पर्व है, हम भी उपवास करेगे । पर्व पयुंषण जब भी आते हैं हम उन्हे
मनाते है । किन्तु रूढि की तरह मना ले--वह पर्व मनाना नही है। एक व्यक्ति के
चाय का नशा है। तीन वजी की चाय पीता है । नशे की परिपाटी की तरह
पेठु षण सना ले और आत्म-शुद्धि, आत्मोथान नही होवे तो अफीम के नशे की
उरह उल्लास है।इन दिनो में जीवन के उद्देश्य को ठीक से समझ ले । यही
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