रचना क सामाजिक आधार | Rachana Ka Samajik Aadhar

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Rachana Ka Samajik Aadhar by सूरज पालीवाल - Suraj Paliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४गबन? में अभिव्यक्त समसामयिक भारतीय परिदृश्य हिन्दी साहित्य से प्रेमचन्द अकेले ऐसे कथाकार हैं जो देश श्रौर राष्ट्रीया की सकीए सीमाओ को लाधकर विश्व-साहित्य से सम्बन्ध स्थापित करते हैं । “तिलिस्मे होशरुवा” और अन्य ऐसी ही मनोरजन की हल्की-फुल्की सामग्री वाले उपन्यास पढकर प्रेमचद ने अपने मनोजगत्त को पुष्टि और सम्वद्धन तो किया, परन्तु उस धारा से एकदम अलग हटकर समाज की वास्तविकता को पहचाना और यथार्थ के माध्यम से जनता के दु ख-दर्द, आशा निराशा, दमन-उत्पीडन, शोषण और मुक्ति सधर्ष को सशक्त वाणी प्रदान की | प्रमचद का साहित्य अपने युग की समस्त विभीषिकाशो का दस्तावेज और दीपक है । उनके हाथ में ऐसी मशाल है, जिससे वे ग्रपने श्रासपास की जिन्दगी को गहरे जाकर देखते हैं और परखते है। देश की नब्बे प्रतिशत ग्रामीण जनता के निकट बंठकर प्रेमचद ने जो कहानी सुनी और देखी वह अपने साहित्य मे रूपायित की। हिन्दी साहित्य में कबीर के बाद प्रमचद का सबसे प्रखर व्यक्तित्व है, जिसने साहित्य को जत-सामान्य से जोडा। सामतो ढाचे में पिलते सघर्परत मजदुर-किसानो की वाणी को जो स्वर प्रेमचद ने प्रदान किया वह हिन्दी साहित्य में अनूठा है । अपने हृदय के सून श्रौर श्राँख के पानी से प्रमचद ने जो साहित्य रचा वह मात्र कल्पना नही, बल्कि तत्कालीन युग के पीडित मानव का सच्चा चित्र है । शरत, टेगोर श्रोर बकिम बाबू जैसे सुप्रसिद्ध धधला कथाकारो के युग मे रचना करने वाला यह कलाकार उनकी प्रसिद्धि को पीछे छोडकर ऐसे साहित्य को झागे लेकर झाता है, जो जन-जीवन से प्रतिबद्ध और सम्बद्ध है। प्रमचद का हाथ सेव देश की जनता वी 17




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