क्षण भर की दुल्हन | Kshan Bhar Ki Dulhan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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चैरसी के मुख पर उभरे श्वेद-कणों को पोछा । पत्नी वे इतने अनुराग
भदुल स्पश् से कुम्भा को एक अलौकिक सनन््तोप मिला । अपनी झान्तरिक
विकलता को दीघ नि इवास द्वारा निकालकर व बोले, 'ठबुरणी सा !
झाप यह भनली भाति जानती हैं कि परसो के युद्ध में मेवाड बूदी से परा-
जित हो गया है । बूदी के निकट गाँव निम्बेड में दोनों सेनाआा के बीच
घमासान युद्ध हुआ । सहस्त मूधवशी युद्ध पिपासुओं के समक्ष भुटठठी भर
हाडा सरदारो ने केसरिया पहनकर सामना किया । सभी कहते हैं कि
विजय सत्य की होती है । भसत्य पर लडा युद्ध उचित नहीं । हालावि
राणा लाखा जी के पास बूंदी से लडने वा कोई ठोस प्राधार नहीं था,
फिर भी उद्दोने भ्रपती विस्तारवादी नीति का पोषण करने के लिए हाडाराव
वीरसिंह जी को एक टिनि पत्र लिखकर यह माँग की कि उह्े चित्तोड की
पराधीनता स्वीकार कर लती चाहिए। उनका तक भौर माँग है कि
धहोने जिन ग्रामो पर अधिकार किया है वे चित्तौड़ के हैं ।/
“क्या यह सच है ? ” ठऊुराणी ने प्रइन किया ।
“नही। जो गाँव आज बूदी का गौरव बढ़ा रहे हैं, उन्हे हाडा
बीरो ने तलवार के जार से मीणा से जीता है । उहें इस तरह की धोंस
पर कसे दिया जा सकता है। मीणो से युद्ध करता कोई बच्चो का खेल
नही। सो हाडा नरेश वीर भसिह ने उन ग्रामो को देने से सवथा भ्रस्वी
कार कर दिया। परिणाम स्वरूप राणा लाखा ने बूदी के विरुद्ध युद्ध की
घापणा कर टी । विजय सत्य की होती है। हाडढाप्ो ने भ्पने मुट्ठी भर
योद्धाम्ो के साथ राणा के छत्ते छुआ दिये। स्वय वीर॑धिह ने राणा
लासा यो युद्ध भूमि म ललकारा । सुनते हैं, बिजलियो की भाँति चमकती
दोनो की तलवारें टक्रायी + कितु हाडो के उस प्रप्रत्यालित॑ भाक्रमण को
भेवाडी नहीं रोक सफे । वे भाग सड़े हुए 1--इस लज्जाजनक पराजय
भोर प्रपपात वो राणा जी नही सह सके । उन्हाने चित्तौड पहुँचते-पहुचते
एक भयावक प्रतिज्ञा वर ली ३
कुम्मा वरसी शात हो गये । उनके नेत्रो के स्फुलिग कुछ क्षणों के
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