भाग्य-चक्र | Bhagya Chakra

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Bhagya Chakra by विनोद - Vinod

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उफ नीलिमा तेईस ऑके_+-++ह-के+क चै+1+++:/:++-++-+-+-+++-०-२::-४-३-३३-४७३४४:३--३-३--++-+ रुपया वसूल किया जा रहा है। शआआप लोगो ने रुपया का क्या इन्तजाम किया या नहीं ? माँ--कुद्य भी नही बेटा ! घर में एक पैसा भी नहीं है। अभी तक बैठी यही सोच रही हूँ । ; सुगेश--यह तो बडी सुश्किन्न फी बात है| उसी समय नीलिमा की माँ को पडोसिन ने बडे जोर से चिल्ला कर बुलाया । उसके लडके को फे-स्त हो रहें ये। लड़के का घुरा द्वाल था । यह फहकर वह चली गई । नीलिमा भा जाने लगी। यह देख उसने कह्ढा--बेटी, तू यही पर रठ । मै अभी आती हूँ। , इसके चले जाने पर सुरेश बाबू मे नीलिमा से फहा-- मुमे प्यास लगी है, थोडा पानी दो । नीलिमा ने भीतर से पानी लाकर दिया। पानी पीकर सुरेश बाबू ने ऊद्दा--'तुम्द्दारा नाम नीलिमसा है !” नीनिमा ने मदस्वर मे फहा--हाँ । उस मधुर कठ से हाँ सुनकर सुरेश बाबू मुग्ध हो गये । सुरेश वाजू ने कहा, तुम्दारी माँ रुपयों के लिय चिन्धित हो रही हैं । तुम रुपया लोगी नीलिमा--मैं रुपया तेकर क्‍या उरूँगी ? ज़रूरत पडने पर माँ लेगी । सुरेश बापू ने हँस कर कट्दा-तुम्दारी माँ एडी हुई आज नही, छल नहीं का दिसाव है। उन्हें उधार देने में छर




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