हिन्दी के मुसलमान कवियों का कृष्ण काव्य | Hindi Ke Musalman Kaviyon Ka Krishna Kavya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिंदी के मुसतसाव गवियां का कृष्णा काव्य 13
भ्रवतारी कृष्ण
कृष्ण के अवतारी रूप विष्णु का नारायण तथा वासुदेव से तादात्म्य कृष्ण
के व्यक्तित्व की देवत्व प्रदान वरता है इृष्ण विष्णु के आठवें अवतार बरनें। इृष्ण
वो लेकर पौराणिव आत्यान रचे जाने लगे और उनके घरित्र को अनेव छत्रियाँ
उरेही गयी। उनके बालरूप और मनोहर रूप को ग्रोगाल कृष्ण कहा
जाता है। ग्रोपाल हृष्ण के साथ प्राय आभीर जाति का उल्लेख क्या
जाता है। 'गोवघन की कथा से स्पष्ट है - इृष्ण प्राचीन आभोर जाति के नेता
थे, जिनवो जीविका ग्रोपासन पर निभर थी। कृष्ण का विवास कई चरणा में हुआ
है वामुदेव कृष्ण का विष्णु भे ऐकाकार होवर वैष्णव धम के मूलाघार से जुड़ना
कृष्ण के गोपाल रुप की कल्पना, राधा आगमन और अत में उनवे बहुरगी
व्यक्तित्व का भक्तिकाध्य मे आकलन किया गया हैं । बकिमचद्ध इसे हरिवश पुराण
से पहले की रचना मानते हैं। 7 विल्सन के अनुसार इसका रचना काल छठी
शती है। क्रि'तु भारतीय विद्वान इसे ईस्वी सन् के पूव या उसके आसपास की शति
मानते हैं। * इसके पच्म अश में कृष्ण का अलौकिक चरित्र वर्णित हैं।
कृष्ण विष्णु के अशावतार हैं । देवागनाएँ गोपिया के रूप में विष्णु के विहा-
राय अवत्तोणे हुई हैं । उसके 13 वें अध्याय मे कृष्ण का रास वणन परवर्ती पुराण
भागवत के ढंग पर हुआ है | यह अछय ग्रह्मपुराण क 189 वें अध्याय स हँषह
मिल जाता है। महाँ गोपियों मे कष्ण की प्रियतमा कृत्त पुण्या मदालसा (इलोक 33
गोपी का उल्लेख मिलता है !
13 दें अध्याय मे रास वणन है । व्षी की ध्यति से मअमुस्ध गोपियाँ रास
सण्डप की ओर खिची चली आती हैं । क्तु वहां पहुचने पर इृष्ण उहे नहीं
मिलते । वह किसी प्राणविवा प्रिया गोपी को साथ ले कही निकल पढते हैं। पद
विन्हों से वे योषियाँ यह भलिभाति भाँप लेती हैं किः कृष्ण किसी रमणी के साथ है,
कितु आग चलकर उम्र पुण्य शीला के भी त्याग देने का सकेत मिलता है ।
यहाँ भपवान हृष्ण के चरित्र को वैष्णव सम्प्रदाय के दायरे से निकाल वर
एक व्यापक धम भूमि म॑ प्रस्तुत किया गया है 1 अध्याय 33 में किया गया कृष्ण
शिव अभेद बणन इसी सामजस्य भावना का परिचायक है। भ्ीमदभागवर््
रेष्ण लीला का सर्वाधिर सुब्यवस्थित बोश है । इसके अतयत प्रथम बार कपष्ण
की बाल किययोर और यौवन लीलाओ का व्यापक वियास हुआ है। इस प्रकार
इसमे कष्ण चरित्र के भावात्मक पक्षों का सागोपांष निदक्न प्राप्त होता है।
पूववर्ती पुराणों के सक्षिप्त प्र्यों का यहाँ यवेष्ठ विस्तार हुआ है तथा अनेक नये
1 $ष्ण चरित् प् 103
2. थाचायें हजारीप्रसाट द्विवेरी -सूर साहित्य पृष्ठ 6
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