गिररी गौरव | Girari Gorav
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
308
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(६ #. .)
जलम मरण् विधना नियम, जाणे॑ मिनखा जात ।
पलक भापेह सरा परा, फिर जोबा परभात्त ॥
मानव विधाता के इस विधान से अवगत है कि जो जन्म लेता है
उसकी मृत्यु भी निश्चित है। बसे दुलभवा से प्राप्त यह मानव देह
इतनी क्षणभगुर है कि रात्रि को हमारी पलक बद होते ही हम मृत्यु
को गोद में लीउ ही जाते है और प्रभात मे आखे खुलते ही फिर जडता
से बिमुक्त होकर प्राणवान हो जाते है।
जी
मरवा लू कितरा भर, जोवेह श्राप जतन।
जे मर रहवे जोवता, पूर्जह पाव वतन ॥
राष्ट्र देवता की अभिवन्दना हेतु प्राशोत्सय के लिए क्तिने लोग
हैं जो मुक्ति के रूप मे मृत्यु का वरण करते हैं। सामाय जन तो क्षेद्र
जीवन के सरक्षण के लिए न॑ जाने कितने अवसरवादी यत्न करते हैं
कितु जो मातृभुमि के लिए पयौछावर हो जाते है उनके प्रशस्त'
चरणो की वदना सम्पूण राष्ट्र युग युगों तक करता है 1
गिररी गोरव 3
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