श्रीमद्भागवद्गीता भाग ५ | Shreemadbhagwadgeeta Bhaag 5

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Shreemadbhagwadgeeta Bhaag 5  by हंस्स्वरूपी महाराज - Hansswaroopi Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१०य३ धीमहबद्दीता . [अ्रश्या? ४] ) 06 जमपि जनियोगं प्रापदेश्वययोगा है 2/(0दृगतिच गतिमत्तां प्रापदेक द्यनेक््‌ ॥ (व विविधविषयधर्मग्राहिसस्धे तणानाम्‌ 31% जि प्रशतभयविहन्त ब्रह्मयत्तन्नतो5स्मि ॥ अहा! आज कुरुक्षेत्रस रणथूमिम भारतकुल भूषण अज्धनके रथकी शोमा वर्शनं करनेमें यह छोटी जिहा कैसे समय हासकती है! जिस सरथका सासथी बननेके लिये खय श्री गोलोकविहारी भक्तहितकारी त्रिल्ोकीवाथने अपनी सोलहों कज्ञाओंकों लिये पदापण किया है। आर्यावर्तके वीरशिरोमशियो | युडकलामे प्रवीण क्षत्रियवेशावतंसो ! उठो ! उठो !! चेतो ! चेतो !! अपने-अपने शज्नोंको ग्रहण करो | रणभूमिकी शोभा देखो | मरो और मारो ! क्योंकि तुम वीरों को फिः ऐसा संयोग कहां श्राप्त होगा ? कि अजुनके रथ हांकते समय परिश्रान्त हानेसे श्यामसुन्दके ललाट तथा कपोलॉपर श्रमकरणोंमे - भीगीहुई लटूरियोंकी अलोकिक शोभा देखतेहुए प्राण देकर उनके स्ररूपमें जामिलो | क्योंकि अन्य युद्धोंम तो मृत्यु प्राप्त होनेसे स्वर ही का सुख लाभ होता है जो नश्वर है, पर इस युडमें जहां स्वयं महाप्रभु तुम्हारी झत्युके समय तुम्हारे सम्मुख सुशोभित रहेगा तहां तुम को कैंवल्य परम पद आरोष्त हेनेमें क्या सन्देह है ? कुछ भी नहीं तनक भी नहीं। * ह ध् _श्रिय पाठकों .। चलो हमलोग भी इसी मनोहारिणी छबिको नम बधाये हुए अपने विषयकी ओर चले | 6




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