श्री विपाकसूत्रम | Shri Vipak Sootram
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
116 MB
कुल पष्ठ :
882
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्वाध्याय ] हिन्दीभाषाटीकासहित (१३१)
है (२) दिग्दाह-किसी एक दिशा-विशेष मे मानो बड़ा नगर जल रहा हो, इस प्रकार ऊपर की
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ओर प्रकाश दिखाई देना ओर नीचे अन्धकार मालूम होना, दिग्दाह कहलाता है | दिग्दाह के होने पर
एक प्रहर तक अस्वाध्याय रहती है।
(३) गर्जित-बादल गजेने पर दा प्रहर तक शास्त्र की स्वाध्याय नहीं करनी चाहिए।
(४) विद्य तू-बिजली चमकने पर एक ग्रहर तक शास्त्र की स्वाध्याय करने का निषेध है।
... आरा से खाति नक्षत्र तक अर्थात् वर्षा ऋतु मे गर्जित और विद्यूत् की अस्वाध्याय नहीं
हं।ती, क्योकि वर्षाकाल मे ये प्रकृतिसिद्ध-स्वाभाविक होते है।
(४) निर्धात-बिना बादल वाले आकाश मे व्यन्तराबिकृत गजेना की प्रचण्ड ध्वनि को
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निर्घात कहते है। निर्धात होने पर एक अहं/रात्रि तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए ।
(६) यूपक-शक्कपक्ष मे प्रतिपदा, द्वितीया और ठतीया को संध्या की प्रभा और चन्द्र की प्रभा .
का मिल जाना, यूपक है। इन दिनो मे चन्द्र-प्रभा से आवृत हं।ने के कारण सन्व्या की समाप्ति
मालूम नहीं होती | अतः तीनो दिनो मे रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करना निषिद्ध हे ।
(७) यक्षादीप्त-कभी कभी किसी दिशा-विशेष मे बिजली सरीखा, बीचबीच मे ठहर कर, जो
प्रकाश दिखाई देता है उसे यक्षादीप्त कहते है। यक्ञादीप्त होने पर एक प्रहर तक स्वाध्याय नहीं
करना चाहिए |
(८) धृपिका-कार्तिक से ले कर माघ मास तक का समय मेघों का गर्भभास कहा जाता है।
इस काल मे जो धूम्र वर्ण की सून्म जलरूप धू वर पड़ती है, वह धूमिका कहलाती है। यह घूमिका
कभी कभी अब मासों मे भी पड़ा करती है। धूमिका गिरने के साथ ही सभी वस्तुओं को जल-क्लिन्न
कर देती है । अत यह जब तक गिरती रहे, तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए ।
(६) महिका-शीत काल से जो श्वेत वर्ण की सूक्म जलरूप धूवर पड़ती है, वह महिका
कहलाती है। यह भी जब तक गिरती रहे, तब तक अस्वाध्याय रहता है ।
(१०) रज-उद्घात-वाजु के कारण आकारा मे जा चारो ओर धूल छा जाती है, उसे रजउदू-
घात कहते है। रजउद्घात जब तक रहे, तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए।
ये दश आकाशसम्बन्धी अस्वाध्याय है।
(११-१३) अस्थि, मांस ओर रक्त-पच्चेद्रिय तिर्यज्ञ के अस्थि, मांस और रक्त यदि साठ
हाथ के अन्दर हो तो संभवकाल से तीन प्हर तक स्वाध्याय करना मना है। यदि साठ हाथ के अन्दर
बिल्ली वगैरह चूहें आदि को मार डाले तो एक दिन-रात अस्वाध्याय रहता है ।
इसी प्रकार मनुष्यसम्बन्धी अस्थि, मांस और रक्त का अस्वाध्याय भी समभना चाहिए ।
अन्तर केवल इतना ही है कि इन का अस्वाध्याय सौ हाथ तक तथा एक दिन-रात का होता है। स्त्रियों
के मासिक धर्म का अस्वाष्याय तीन दिन का एवं बालक और बालिकाओ के जन्म का क्रमशः सात
ओर आठ दिन का माना गया है|
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