चाणक्यनीतिदर्पण | Chanyakyanitidrpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्यायः १ | २९.
ग नहीं है, ज्ञानते परे सख नहीं है॥ ११॥
जन्मसत्युहियात्पे को सुनते कःशुभाशुभम् ॥
नरकेषुपतत्पे कएकोयातिपराज्गतिम्॥ १३ ॥
टीका-यहे निश्चय है कि एकही परुष जन्ममरण
पाता है सखद/ख एकही भोगता है एकही नरकामें
पड़ंता है ओर एकही मोक्ष पाता है, अर्थीतृ इन
कामा व कोइ किप्तीकी सहायता नही करसक्ता ॥१३॥
तृणंत्रह्मविद:स्वरगतणंसूरस्पजीवितं ॥
जताक्षस्पतणनारा।नस्रहस्पतणजगत्॥ १०॥
टीका-अह्यजश्ञानीको स्वग .तृण हैं, शूरकों जीवन
तृणहे, जिसने इन्द्रियोंकी वश किया उसे ख््री तृण॒के
तल्य जानपड़ती है, निस्प्हकों जगत तुर्णहे॥ १४॥
विद्यामित्रेंप्रवासेषुभायीमित्रेगह्ेषु च ॥
व्याधितस्योषधंमिन्रंधर्मोमित्रंसतस्य च॥१७॥
टीका-विदेशम विद्या मित्र होती है, शहमें भार्यो
मित्र है, रोगीका मित्र ओषध है ओर मरे का मित्र
धमं हैँ ॥ १५ ॥
ठथादष्टिःसमुदेषुटथातप्ेषुभोजनम् ॥
ठुथादानंधनाब्वेषुठ्थादीपोदिवापि च॥ १६॥
टीका-समुद्गोंम वषों वृथा है, और भोजनसे तृप्तकों
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