चाणक्यनीतिदर्पण | Chanyakyanitidrpan

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Chanyakyanitidrpan by इन्द्र ब्रह्मचारी - Indra Brahmchari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्यायः १ | २९. ग नहीं है, ज्ञानते परे सख नहीं है॥ ११॥ जन्मसत्युहियात्पे को सुनते कःशुभाशुभम्‌ ॥ नरकेषुपतत्पे कएकोयातिपराज्गतिम्‌॥ १३ ॥ टीका-यहे निश्चय है कि एकही परुष जन्ममरण पाता है सखद/ख एकही भोगता है एकही नरकामें पड़ंता है ओर एकही मोक्ष पाता है, अर्थीतृ इन कामा व कोइ किप्तीकी सहायता नही करसक्ता ॥१३॥ तृणंत्रह्मविद:स्वरगतणंसूरस्पजीवितं ॥ जताक्षस्पतणनारा।नस्रहस्पतणजगत्‌॥ १०॥ टीका-अह्यजश्ञानीको स्वग .तृण हैं, शूरकों जीवन तृणहे, जिसने इन्द्रियोंकी वश किया उसे ख््री तृण॒के तल्य जानपड़ती है, निस्प्हकों जगत तुर्णहे॥ १४॥ विद्यामित्रेंप्रवासेषुभायीमित्रेगह्ेषु च ॥ व्याधितस्योषधंमिन्रंधर्मोमित्रंसतस्य च॥१७॥ टीका-विदेशम विद्या मित्र होती है, शहमें भार्यो मित्र है, रोगीका मित्र ओषध है ओर मरे का मित्र धमं हैँ ॥ १५ ॥ ठथादष्टिःसमुदेषुटथातप्ेषुभोजनम्‌ ॥ ठुथादानंधनाब्वेषुठ्थादीपोदिवापि च॥ १६॥ टीका-समुद्गोंम वषों वृथा है, और भोजनसे तृप्तकों




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