दशवैकालिक सूत्र | Dasvekalik Sutra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
748
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भस्तावना ।
अक्षय सुख के साधन
प्रिय सुजपुरुषो ! इस अनाएि अनंत संसार में यह जीवात्मा, कर्मो के फेर
में पड़कर इतसतत; गेंद की तरह अ्मण कर रही है; इसकी कहीं पर भी स्थिति
नहीं होती । यह कभी नरक गति में जाती है, तो कभी तिर्यच गति में; एवं कभी
मनुष्य गति में जाती है, तो कभी देवरति में | इस इधर उधर की भंगदौड़ में यह
आत्मा भमहान् दुःख भोग रहददी है, इसे कहीं पर भी सुख नहीं सिछता । मरक और
तिय॑ंच गति में तो स्पष्ट रूप से दुःख है ही, केचछ मनुष्य और देवराति में सुख
अबहय है; किन्तु वह भी नाम मात्र का है, उसमें भी दुःख मिला हुआ है | और
तत्सम्बन्धी स्थिति के भोग केसे के बाद तो फिर वही दुःख ही दुःख है । अत;
दयानिधि तीथंकर देवों ने, जहाँ पर किसी भी प्रकार का छुःख नहीं है, ऐसे अद्वितीय
अक्षय सुखधाम मोक्ष की आप्रि के छिये, जीवात्मा को सम्यगृदशैन, सस्यगज्ञान
और सम्यकूचारित्र, ये तीन साधन बतलाये हैं | इन्हें रक्षत्रय भी कहते हैं । क्योंकि
बस्तुतः यही वास्तविक सुख के दाता रत्न हैं। इनके द्वारा अनेकानेक भव्य जीव
पूर्व काछ में मोक्ष सुख आप्त कर चुके हैं ।
साधनों का स्वरूप
यहाँ असंगवश् संक्षेप रूप में, उक्त साधनों का यत्किचित् स्वरूप भी
बतछाया जाता है । इस संसार में जीव और अजीब, ये दो द्रव्य पूर्णतया सिद्ध हैं ।
संसार में सर्वत्र इन्हीं दोनों द्वव्यों की विभूति इृष्टिगोचर होती है । अल्येक द्रव्य
उत्पाद, व्यय और भौष्य: धर्म से युक्त दे । अतएब प्रत्येक पदार्थ मूछ भाव को खुब
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