अथ आत्मबोध | Ath Aatmabodh

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Ath Aatmabodh by श्री शंकराचार्य - Shri Shankaracharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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.. आत्मबोधः | 'श५, : होनाता है तब उसके आश्रय से अपने २ कार्यों में , लगते हैं. बेसेही देह इन्द्रिय मन बुद्धिमी आत्मा के 'चेतनताका आश्रय लेकर अपने २. व्यापार करने. लगते हैं अत एवं जब देह इन्द्रिय आदि में स्वतः : चेंतनता नहीं है. और उनमें आत्मचैतन्य प्रतीत मात्र होता है तो वे आत्मस्वरूप नहीं हो सक्त ॥ १६ ॥ अब जों यंह कहो कि ऊपर कहे हुए वाक्य से -झात्मा चेतनरूप तो निश्चित होगया परन्तु उसमें जन्म, मरण, यौवन, दृद्ध, काण, बधिर आदि व्यव . 'हार प्रतीत होते हैं इस कारण गात्मा जन्म द्धत्युवाला : प्रतीत होता. है. तहां कहते हैं कि- “इलाक-देह्रोन्द्रयथगणान कमाण्यमले स॒- ' ब्िर्दात्यमान । अध्यस्पन्त्यविवे- . कन गृगन नाहमाएु॑वदू॥ २० ॥ अन्वयः-देहेन्दरियगुणान्‌, कंमाणि, ( व ) '




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