फ़िजी द्वीप में मेरे 21 वर्ष | Fiji Dwip Me Mere 21 Year
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फिजी दीप में मेरे २१ ये |
नवह-० नह वननवा-नननका-नवनया-दपननवह-नम--वेन-याननका-न-काननक-नका-क-नपी-नणका- नव नव
प्रेम मुझे घर की झोर खींचे लाता था श्र कभी माता के
दुरखों की स्मृति मुझे इस बात के लिये बाध्य कर रही थी
कि में कहीं काई नौकरी कर लू' झौर घर न जाऊ-। इस
प्रकार मैं दुविधा में पड़ा हुझा था!
पक दिन मैं कोतवाली के पास चौक में इसी शधिक
चिन्ता में निमझ था कि इतने में मेरे पास एक झअपरिचित
व्यक्ति श्राया और उसने मुझ से कहा “क्या तुम नोकरी करना
प्याहते हे ? ” मैंने कहा 'हां । तब उसने कहा 'झच्छा हम
तुम्हें बहुत झच्छी नौकरी दिलवावेंगे । एसी नौकरी कि तुम्हारा
दिल खुश हेजजावे । * इस पर मैंने कहा में नौकरी तो करूंगा
लेकिन ६ महीने या सालभर से झधिक दिन के लिये नौकरी
नहीं कर सकता' । उसने कहा श्रच्छा ! श्रादो तो सही, जब
तुम्हारी इच्छा हे। तब नौकरी छोड़ देना के।ई हजे नहीं, चलो
जगन्नाथ जी के दर्शन तो कर लेना । मेरी बुद्धि परिपक्क तो
थी नहीं में बातों में श्रागया । पाठकगण ! हा ! इसी तरह
« थाखे में आकर सहस्रों भारतवासी झाजन्म कष्ट उठाते हैं ।
हे मेरे सुशिक्षित देशवन्घुझो ! क्या झापने कभी इन भाइयों के
विषय में कुछ विचार किया है ? कया श्राप के इदय में कभी
ही इन दुःखित भाइयों के लिये कुछ कष्ट हुआ है. ? क्या कभी
दी सजला खफला मातभूमि के उन पुत्रों के यि'य में श्रापने
खुना है जो कि डिपावालों की दुष्टता से दूसर दें, में भेजे
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