हरीऔध और उनका साहित्य | Hariaudh Aur Unaka Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
565
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पूव पुरुष ३
काशीनाथ ने सिपहसालार की बातों को स्वीकार किया |
उन्होंने कहा--वि तथाकथित संदिग्ध झ्लियाँ मेरे परिवार की हैं
अतः उनके हाथ का भोजन करने में मुझे कोई आपत्ति नहों है ।
आप कढछ ग्रातःकार आयें और आपके समक्ष ही में उन बच्चों
के साथ बैठकर उन ख्तल्ियों के हाथ का बना भोजन करूंगा। में
आपको हर प्रकार से आश्वस्त कर देना चाहता हैँ ।' सिप्रहसालार
ने काशीनाथ की बात मान छी |
पुराने जमाने से रसोई घर बड़े संकीण होते थ। रसोई घर
को प्ृथक् रखने के लिए एक रेखा खीच दी जाती थी या पादा
बना रहता था। उस रेखा के बाहर कोई भी आ जा सकता
था। काशीनाथ ने अपने परिवार की स्लियों से रसाडइ बनाने के
लिए कहा और मुंशी जी की स्त्रियों को पाटे के बाहर बंठकर रोटी
बेलने तथा अन्य सहायता देने का आदेश दिया। रसोई के निमोण
में उन श्लियों ने इस प्रकार सहायता दी। छोट बच्चो को साथ
बेठाकर खाने में काशीनाथ को किसी प्रकार की छिचक्िचाहट
न हुई। उन्होंने परिवार के सदस्यों से कहा कि ये बच्चे तो बाल
भगवान हैं। इनके साथ अभी जाति अथवा वर्णका क्या
बंधन है | मुझे इन्हें साथ बेठाकर खिलाने में कोई आपत्ति नही ।
दूसरे दिन पग्रातःछालक सिप्वसाकछार फाशोनाथ के निवास-
स्थान पर पहुँचा । सिपहसाछार को ऐसे स्थान पर पेठाया गया
जहां से वह रसोई घर देख सके। तीन आसन बिछाये गये
और काशीनाथ उत्त बच्चों के साथ भोजन करने बैठे । इस प्रकार
काशीनाथ ने उन बच्चो के साथ भोजन किया। सिपहसालार को
संदेह के छिए कोई स्थान न रह गया। उसे यह पृ्ण विश्वास हो
गया कि ये स्तलियाँ ओर बच्चे काशीनाथ के ही परिवार के हैं ।
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