अध्यात्म भागवत - संग्रह | Aadhyatm Bhagawat Sangrh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीगणेशाय नम: अध्यात्ममागवत-संयह पहला अध्याय “४$-लदीधवज 7 वेदान्तसार चतुःःछोकी भागवत ब्रह्म ओर ईश्वरका संवाद शान्ताकारं श्ुजगछयनं पद्मनामं सुरेदटां विश्वाधारं गगनसहरं मेघवर्ण शुभाइ़म। लक्ष्मीकान्तं कमलनयन॑ योगिभिषध्योनगस्य॑ वन्दे विष्णु मवमयहरं स्वेलोकेकनाथम ॥ भगवान्‌ श्रीविष्णुको नमस्कार हे जो सब भवबाधाओंको दूर करते हैं और जो सब लोकोंके एकमात्र नाथ है। उनका मेघके समान च्याम वर्ण ओर शान्त खरूप है । इस ब्रह्माण्डके अधि- प्लान वे ही है। उनके नेत्र कमछके समान हैं. और वे योगियों हारा ध्यानसे ही जाने जाते हैं । महाप्रल्यके अनन्तर जब सर्वेत्र जछू ही जल था, तब छक्ष्मी- पति भगवान्‌ शेष-शय्यापर विश्राम कर रहे थे । उनके मनमें संकल्प उठा--'में एकसे बहुत होडें/ । संकल्प उठते ही उनकी नाभिसे ब्रद्माण्डरूपी कमर उत्पन्न हुआ, जिसमें ब्रह्माजी बेठे हुए थे। ब्रह्माजी न जान सके कि में कौन हूँ ? उनके मनमें ये प्रश्न उठे----




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