योग भक्ति दर्पण | Yog Bhakti Darpan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
56
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ३ 9)
है। विश्व-प्रम विश्व-नाथ को मन-मन्दिर में स्थापित करने में
समर्थ होकर स्व ईश्वरोय-गुणों का आकर्षण करने लगता है ।
८ विश्व-प्रम की प्राप्ति का साधन “ योग ” है। जब तक भारत
में योग के द्वारा वास्तविक शक्ति की उपासना होतो रही, तब
तक इस देश के बच्चे शक्तिशाली होते रहे । आज इस योग शक्ति
के बिना देश सर्वथा मृतप्राय हो रहा है। देश के कलानिधि
मायाधिपति भी इस से रूठे हुए हैं | योग सर्व विद्याओं, सब
देवों के देवत्व परमतत्व का कारण होने से हमारी सारी उपास-
नायें योग द्वारा सर्वशक्तिसंपन्न कराया करती थीं। योग में
पूर्वोक्त अियशक्तियों का विकाश नियमित रूप से स्वंतः होने
के कारण देश स्व-देश-स्व-आपत्मा का देश अर्थात सारा
विश्व इस देश को अपना देशा मानता था। ५००० बर्ष से पूर्व
महाभारत के समय में योग का विद्वत्समाज देशमें ईर्ष्यादि दोषों
का केन्द्र समझ कर बनों में जा छिपा | परिणाम यह हुआ कि
कि इस विद्या को सर्वथा गुप्त रखना समझ कर किसी ने
किसी को न सिख्वाया; इस कारण यह विद्या लुप होगई, ओर
देश स्व प्रकार से क्षीण होकर आधुनिक अवस्था में परिणित
हो गया है | देश के अधःपतन का कारण जब तक दूरन
होगा, तब तक यह देश कभी भी अपनी पूर्व अवस्था को
प्रास नहीं हो. सकता | यदि कोई मनुष्य वृक्ष की जड़ को
काटे ओर पत्तों को सींचे क्या वृक्ष हरा भरा हो सकता है?
कदापि नहीं । जब तक अप्लि प्रज्वलित रहती है तब तक शेर भी
समीप नहीं आ सकता किन्तु उसी अप्लि की राख होने पर कुत्त
भी उसपर लोटा करते हैं। आज योगसपि के बिना भारतकी यही
दशा है। इस का पुनरुत्थान भी योगद्वारा ही होगा । अत्यन्त
हर्ष का विषय है कि यह लक्ष्य भी श्री १०८ परमपूज्य पणिडत
रामलाल जी योगीराज महाराज के मानसक्षेत्र में विकसित हो
कर देश में जअदेवात्मक शक्ति संयुक्त नवीन परिस्थिति
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