ध्वन्यालोक | Dhvanyalok

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Dhvanyalok by विश्वेश्वर: - Vishveshvar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दो शब्द राष्ट्र-भाषा हिन्दी को गोरव-वृद्धि के लिए जहाँ झ्राघुनिक विधयो पर उच्च कोटि के नवीन ग्रन्थो के प्रकाशन को झ्ावश्यक्ता है, वहाँ भ्राचोन साहित्य, दर्शन श्रादि के सर्वोत्तम ग्रन्थों को हिन्दी-पाठक तक पहुचाता भी झआव- श्यक है । इसी दृष्टि से सस्ट्रत साहित्य झास्त्र के इस महत्वपुएं ग्रन्य “ध्वन्या- लोक! को यह विस्तृत हिन्दी व्यास्या प्रस्तुत को जा रही है ।॥ 'ध्वन्यालोक काव्य-दर्शन का प्रन्थ है. भ्रतएव उसका द्ब्दानुवादमात्र बयेध्ट नहों है-- विषय के स्पष्टीकरण के लिए सर्वत्र ही व्यास्या भी श्रनिवार्य्य हैं। अत हिन्दी घ्वन्यालोक' में शब्दानुवाद के झ्रतिरिकत प्रत्येक पारिभाषिक प्रसड्भर फो साज्भोपाज्न व्यास्या भी कर दी गई है । स्वभावत श्रनुवाद-भाग से व्यास्या- भाग का कलेवर कई गुएग होगया है श्रौर “ध्वग्यालोक' को “आलोक- दीपिका एक प्रकार से एक मोलिक प्रन्य हो बन गई है । यद्यपि हिन्दी ध्वन्यालोक' की रचना मुख्यत. हिन्दी के विद्वानों के लिए ही हुई है, फिर भी क्योंकि वह सस्कृत साहित्य का एक प्रौढ प्रन्य हैँ इस- लिए कठिन द्ाशश्ननिक विषयों फी चर्चा भी भ्रनेक स्‍्थलो पर प्रवापास भरा हो गई है। यह चर्चा, सम्भव हैँ, हिन्दी के विद्वानों के लिए विशेष उपयोगी भ्यवा रुचिकर भ हो, परन्तु हिन्दी व्यास्या के उपलब्ध होने पर सस्कृतज्ञ विह्मन्‌ और सस्कृत के श्रधिकाश विद्यार्यी भी इससे लाभ उठाने का यत्न करेंगे ही--इस बिचार से उनकी झ्रावश्यकताझों को दृष्टि में रखते हुए पत्किध्लिचित्‌ कठिन द्यास्त्रोय मोमासा को भी स्थान दे दिया गया है । बस्तुत सल्कृत के इस युग प्रवर्तक ग्रन्थ की व्यारया सें सस्कृत को सोमासा-यद्धति का पुएं बहिष्कार सम्भव भो नहों था । हि प्रय्य के मुद्रण सें इस बात का ध्यान रखा गया है कि जो लोग सरल रुप से फेदल मूल ग्रन्थ का शब्दानुवाद पढना चाहें उन्हें क्षिसी प्रकार की कठिताई न हो ॥ इसके लिए झतब्दानुवाद तथा व्याख्या भाग में ग्रलग प्रलय अकार के टाइऐंं शग अयोग शिया सपा है! शब्दानुदाद क्यो काले भोर शेप व्याख्या भाग को सफेद टाइप में छापा गया है ॥ जो लोग केवल श्नुवाद पढ़ना चाहें वह सफेद टाइप को छोड कर केवल काले टाइप में छपे प्रदुवाद भाग को पढ़ सकते है 1




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