पदम् सिंह शर्मा के पत्र | Padam Singh Sharma Ke Patar

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Padam Singh Sharma Ke Patar by बनारसीदास चतुर्वेदी - Banaarseedas Chaturvedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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व सूपिका पत्र-लेखन कला सन्‌ १८८ ७-ण २१ वर्ष का एक फरासीसी युवक पेरिस की एक मामूली गली में श्रपने छोटे-से कसरे में बैठा हुभ्ा हैं । वह कला श्र गान-विद्या का प्रेमी है। श्रभी हाल ही में टाल्सटाय की पुस्तक ४1181 15 ६0 96 ते०ए6 ?” (हमारा कर्तव्य क्या है? ) छपी है । इस पुस्तक मे टात्सटाय नें कला-सम्बन्धी प्रचलित विचारों पर काफी जोरदार श्राक्लेप किये हे । इस पुस्तक को पढ़कर उस युवक की मानसिक स्थिति डॉर्वाडोल हो गई, क्योकि झ्रव तक वह टाल्सटाय को श्रपना श्रादर्श मानता रहा है । उसने मन में सोचा कि चलो, टाल्सटाय को एक चिट्टी ही लिख दूं, वह महान्‌ लेखक मेरे जैसे मामूली युवक के पत्र का उत्तर तो भला वयो देने लगा ! उसने टाल्सटाय को एक पत्र भेज दिया, जिसमें उसने श्रपनी घकाएँ लिखी थी, सौर कुछ दिनो तक उत्तर को प्रतीक्षा भी की, फिर इस वात को भल ही गया । कुछ सप्ताह इसी प्रकार वीत गये । एक दिन काम के वक्‍त वह श्रपने कमरे पर लौटा, तो देखता क्या है कि फरासीसी भाषा में एक लम्वी चिट्ठी कही से श्राई है। उसको खोलने पर मालम हुमा कि यह तो टाल्सटाय का पत्र है ! वह पत्र ३८ एण्ठ का था, या यो. कहिये कि एक छोटा-सा ट्रवट ही था । उस श्रपरिचित साधारण युवक को टाल्सटाय ने 'प्रिय वन्धू' लिखा था । पत्र के प्रारम्भिक दाव्द थे--“तुम्हारी पहली चिट्टी मृूक्ते मिली । उससे मेरा हृदय द्रवित हो गया । पढते-पढते भ्राँखो में ग्राँसू आ गये । इसके वाद टाल्सटाय ने श्रपने कला-सम्वन्वी विचार उस पत्र में प्रकट किये थे--“दुनिया में वही चीज कीमती है, जो मनुष्यों के पारस्परिक सम्चन्ध को हृढ करे, जो उनमें भ्रातृ-भाव स्थापित करे, श्रौर सच्चा कलाकार वही है, जो श्रपनें सिद्धान्तों तथा विध्वासों के लिए त्याग श्रौर वलिदान करने के लिए हँयार हो । सच्चे पेद्ं की पहली कातें कला का प्रेम नही, वल्कि मानव-जाति मे प्रेम है ! जिनके हृदय मे मनुष्य-जाति के प्रति श्रेम है, वे ही कभी कलाकार की हैसियत से उपयोगी वा्य करने वी झ्राश्षा कर सकते हे ।'' टाल्सटाय के विस्तृत पत्र का साराण यही था । इस पत्र ने उस युवक के हृदय पर वटा भारी प्रभाव डाला । सबसे महृत्त्वपुर्णं वात उने यह जँची कि इस विध्व-विरयात महापुरुप ने मेरे जेंस एक श्रपरिचित युवक को इतनी लम्बी ग्रौर सहुदयतापृ्ण चिट्ी सेजी है, श्रीर तव से उस युवक ने यह निष्चित वार लिया कि यदि कोई ्रादमी संकट वे समय में झन्तरात्मा से कोई पत्र




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