श्रीमद भगवद गीता रहस्य | Shrimad Bhagwat Gita Rahsya

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Shrimad Bhagwat Gita Rahsya  by बाल गंगाधर तिलक - Bal Gangadhar Tilak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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डे गीतारहस्थ के प्रत्येक प्रकरण के विषयों की अनुक्रमणिका । भ०९ पहला प्रकरण--विषयग्रवेश । श्रीमद्गगवद्शीता की योग्यता - गाता के अध्याय-परिसमाप्ति-सूचक सद्ृत्प- गीता शब्द का अथ - अन्यान्य गीताओं का वर्णन, और उनकी एवं योगवाणिष्ठ आदि की गोणता - ग्रन्थपरीक्षा के भेद - भगवद्दीतवा के आधुनिक वहिरज्परीक्षक - मदहाभारत-अणता का वतलाया हच्ना गीता तात्पय-प्रस्थावत््यी ओर उस पर सापप्रदायिक भाष्य - इनके अनुप्तार गीता का तात्पर्य - भ्रीशकझराचाय -मधुसूइन - तत्तमप्ति - पैशाचभआधष्य - रामानजञाचार्य - मध्वाचार्य -वछभाचार्य - निवार्क - श्रीधरस्वामी -शानिश्वर - सब की साम्प्रदायिक दृष्टि -साम्मदायिक दृष्टि को छोड़ कर अन्य का तात्यय निकालने की रीति - साम्ग्रदायिक दृष्टि से इसकी उपेत्षा-यीता का उपक्रम और उपसंहार - परस्पर-विरुद्ध नीति-धर्मों का झगड़ा और उनमें होने- वाला करत्त॑व्यधर्म-मोद - इसके निवारणार्थ गीवा का उपदेश |... पृ. १--२७। दूसरा प्रकरण--कर्मजिजशञासा । क्तन्य-मूढता के दो झग्रेज़ी उदाहरण - इस दृष्टि से सद्दाभारत का महत््त - झशि्साधर्म और उसके अपवाद - क्षमा और उसके अपवाद -हमारे शाल्लों का सत्यानताविवेक -अग्रेज़ी नीतिशाद्ध के विवेक के साथ उसकी तुलना - चहस़ारे शाखकारों की इृष्टि की श्रेष्ठता ओर मच्दत्ता -अतिज्ञा-पाज्ञन ओर उसकी सभरांदा- अस्तेय भोर उसका अपवाद - मरने से ज़िन्दा रहना श्रेयस्कर है! इसके अपवाद -आत्मरक्षा -माता, पिता, गुरु प्रद्धति पत्य पुरुषों के सम्बन्ध में कत्तेन्य ओर उनके झपवाद -काम, क्रोष, ओर लोम के निम्नह का तारत्य -घेये आदि गणों के अवसर और देश कात-झादि मर्यादा -आचार का तारतम्य -घर्म-अघर्म की पृछ्मता ओर गीता की अपूबवता। .. . «« « -» पृ रप--५०1। तीसरा प्रकरण--कर्मयोगशास्तर । कर्मजिज्ञाता का महत्व, गीता का प्रथम अध्याय और कर्मयोगशार्र की आवश्यकता -कर्म शब्द के अर्थ का निर्णय - मीमांसकों का कर्म-विभाग-योग शब्द के अर्थ का निर्याय -गीता में योग-कर्मयोग, और वही प्रतिपाद्य है -कर्म- ग




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