मध्यसिद्धान्तकौमुदी | Madhyasiddantakaumudi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
30 MB
कुल पष्ठ :
757
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रदरणम् ] खुघा-इन्दुमती-टी काइयोपेता । ए,
दशघा । विवारः संवारः श्वाठो नादो पोषोष्योयोष्श्पप्राणो महाप्राण ठदात्तो5नु-
दात्तः स्वरितियेति । खरो विद्यराः बाधा अपोपाय | हृशः संवारा नादा घोपाथ ।
दर्गाणां प्रघमतृतीयपश्तमा यणब्वाएपत्राणाः । वर्गार्णा द्वितोयचतुर्थों शल्य महा-
प्राणाः । कादयों मावधानाः स्पर्शा। | यणेड्न्तःस्था;। शपसहा ऊष्माण; | अचः
प्रक्रियामिः परिनिष्ठितानां रामः कृष्णः इत्यादिशव्दानां प्रयोगे क्रियमाणे एवं दृस्व-
स्पावर्णस्य संग्ृतस्वमिध्यथ; । प्रक्रियेति। शाख्रीयकार्यप्रव्ृत्तिसिसये दुण्ड-आठढक«
मित्यादी सवर्णदीर्घादिकर्त॑न्ये तु विद्वतत्वमेव | तेन सन्धिकाय निर्वाघमेव | एतत्सवे
पूर्वत्रासिदुम' इत्यनेन ज्ञापितमिति सिद्धान्तकौमु्यां स्पष्टच ॥ बाह्ेति। वर्णोर्प-
रयनन्तरजातो यत्नो घाद्मप्रयरन ह॒त्युच्यते। खर शति। खफछुठ्थचटतकप
धापस दति वर्णाः1 विवारा श्ति । विवारादिप्रयरनवन्त हृस्यर्थ'। हश इति | ६ य
वचरलणलसमचख्णनप्तमघडघजवगहढदुदइति वर्णा एृस्यर्थः। संवारा श्ति
संचाराद्पियतल्षवन्त हृत्यथ।। थस्पप्राणा इति। फगठ, पवजण, टठण, तदन, परम,
यरलव हत्येतेपां चर्णानाम् अल्पप्राण इृति भाव। | खघ, छत, ठठ, थघ, फभ, शपसह
हस्येतेपां महाप्राण हृस्यपि शेयम् ॥ कादय इति । फख हृस्याविमपर्यन्तमिति पूर्व
मुक्ता वर्षा इृत्ययंः। क भादियपा ते कादयः, मः अवसाने येपान्ते मावसाना इति ।
आज
३. श्वास, ४. नाद, ५. धोष, ६- णघोप, ७, अव्पप्राण, <. मद्दाप्राण, ९, उदात्त,
२०, भनुदात्त, ११, स्वरित्त-श्स मेदसे !
नोटः--जिन वर्णोका उच्चारण करते समय कंठका विकास्त ऐो, उनको 'विवार!
सदतिर्िक्तिको 'संवरार” एवं बिन वर्णीका उच्चारण करते समय श्वास चलता हो उनको
“प्राप्त! जिनका उच्चारण नादसे हो उनको 'नादः तया जिन वर्णोका उच्चारण करनेपर
यूंज होता हो उनको 'घोष? तदतिरिक्तको 'मघोष? एवं जिनके उच्चारण करनेमें प्राणवायु
झा अर्प उपयोग हो उन्हें 'अल्पप्राण' भौर भधिक उपयोग हो एर्हें महाप्राण कहते हैं ।
खर--प्रत्याहरका विवार, श्वास और अधघोप प्रयत्न है ।
हश--प्र याहारका संवार, नाद भौर घोष प्रयत्न है ।
वर्गागाँ -वर्गोंके प्र (क चदतप), तृतीय (यणडद १), पत्चम (डजण
लम)तथा यण् (यव र छ ) का सस्पप्राण प्रयत्न हैं
एवं बर्णोके द्वितीय (ख छ ठ थ फ ), चतुर्थ (घ झ ढ ध भ ) तया 'शल? प्रत्याद्ार-
1 मद्ठाप्राण प्रयत्न है ।
कादयों --'क पे 'म!पर्यन्त (कवर्ग, चबर्ग, टवर्ग, तवग, पवर्ग) वर्ण स्पश कहछाति हें
नोटः-जीमके अग्म ( चोटी ), उ॒पाप्र ( भग्मके समीपस्य प्रदेश ), मध्य ( बीच ) और
मूल ( भादि ) भाग द्वारा कंठ, ता प्रश्मति स्थानोंकों स्पर्श करके कवर्गादि वर्णोक्ता उच्चा-
रण होता ई जतः इनका नाम स्पशे वर्ण दे ।
यणू-( य व र छ ) धन्तःस्प कइछाते हैं ।
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