प्राइमरीकोष | Praimary Kosh

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Praimary Kosh by बी॰ जी॰ एस॰ - B. G. S.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राइमरीकोप, । है १३ श्रत्युक्ति-( सं- खी- ) एक अलझ्भार का नाम, ( भा- ) वहुत बढ़ा- चढ़ा कर कहना, कूडी सराइना । अत्युक्ति--[ सं- ख्री- ) बढ़ा फे कदना | अत्युम्र॒-( गु- ) बहुत, चढ़ा बढ़ा, अधिक 1 श्रत्युत्तम--[ ग॒ुः ) बहुत अच्छा, ठीक | अबत्र--( ञझ- ) यदां, इस जगह, 'मवान! शब्द फे साथ आदरवाचक जैसे अन्मचान्‌ । अथ-( सैं- झ्र- ) फिर आरंभ, शुरू, इस के पीछे । श्रथर्थ--६ सं- पु. ) चौथा चेद्‌ । झअधाई--( सं- स्रो ) बैठक, सभा, फच दरी, श्रखाड़ा, अड्डा । अधथवना--( भा: ) डूबना, अस्त दोना । अथवा--' श्र- ) या, वा । अथाह--( गु- ) गददरा, अगाध ! श्रथै--( क्रि- ) डूबना, अस्त धोना। अधोर--( ग़ु- ) घहुत, अधिक । अर्थलाघक-( गुः ) अर्थ को साधनेवाला, काम की चौज़ । अर्थद््‌रडड--( स॑- पु. ) रुपये पैसे आदि का द्रड अर्थात्‌ झुर्माना । अदन--( सं- पु. ) भोजन, खाना, एक वन्द्रगाद का नाम 1 अदभ्न--( गु. ) बहुत, अधिक । - अदिन--( स॑. पु. ) बुरे दिन, कुस्ममय ।- अदिति-.( सं. स्त्री.) कश्यप की स्त्री, देवों की माता । अद्छि--( सं. पु. ) भाग्य, विषत, चुरादिन 1... अद्वितीय--( गु. ) एकद्दी, जिस के ऐसा दूसरा नहीं, लासानी |




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