मेरी प्रिय व्यंग्य रचनाएं | Meri Priya Vyangya Rachanaen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( 25 ) वही वाल, वही चाल | जय-जय-जय गिरिराज किशोरी, जय महेश पुब्नचन्ध चकोरी। उनके पति महेश जी सड़क के उस पार चले गये थे और यह महिला दिल्‍ली के दरियागंज मुहल्ले में ग़लत जगह पर सड़क पार करने की कोशिश में लभी थों। उनकी इस हरकत पर पास खड़ा प्रिपाहो लगातार सीटी बजा रहा था। हारकर सिपाही दौडता हुआ उनके पास पहुंचा। तब तक मैं भी चहां पहुंच चुका था। सिपाही ने प्ृछा--'सीटी की आवाज़ नही सुनाई पड़ती ? वया पलटकर नहीं देख सकती हैं आप ? ! इस पर श्रीमती महेश ने मेरी ओर एक नश्वर फेरते हुए फरमाया--- 'पहुले तो मैं एक ही सीटी की आवाज्ञ सुनकर पलट जाया करती थी, भेब आदत नही रही।! हमें मह सुनकर परम सन्तोप हुआ कि केवल हमारा ही जमाना नही चला गया है, उन सारे लोगों का जमाना भी अब भूतपूर्व हो गया है जो 'हमारे साथ-साथ अभूतपूर्व थे। आज सुबह एक मबखी अपनी दुलारी नतिनी को, मेरे मस्तक पर टहनते हुए यह संस्मरण सुना रही थी कि कभी यहां पर एक पतली-सी पग्डडी थी और अब तो पुरा नेशवत्र हाइवे निर्माणाघीन है । निदचय ही, हमारा भी एक ज्ञमाना था। कट




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