वीतराग - विज्ञान भाग - 1 | Vitarag - Vigyan Bhag - 1

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Vitarag - Vigyan Bhag - 1  by दौलतरामजी - Daulatramji

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महान भक्ति कवि पं दौलत राम का जन्म तत्कालीन जयपुर राज्य के वासवा शहर में हुआ था। कासलीवाल गोत्र के वे खंडेलवाल जैन थे। उनका जन्म का नाम बेगराज था। उनके पिता आनंदराम जयपुर के शासक की एक वरिष्ठ सेवा में थे और उनके निर्देशों के तहत जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के साथ दिल्ली में रहते थे। उन्होंने 1735 में समाप्त कर दिया था जबकि पं। दौलत राम 43 वर्ष के थे। अपने पिता के बाद, उनके बड़े भाई निर्भय राम महाराजा अभय सिंह के साथ दिल्ली में रहते थे। उनके दूसरे भाई बख्तावर लाई का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है।

पंडितजी के प्रारंभिक जीवन और शिक्षा के स्थान के बारे में कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। दौलत राम। चूंकि उनके प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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घौतरागयिश्ञान भाग-१ 1 १६ घुद्ध स्वभाव दे, स त उसे दवा चादते हैं। घोतरागविज्ञन को ज्ञों धदुून करे घद राग को सारमूत कैसे माने ? कांप न माने 1 ऊध्चैलोक मे सिंद्धालय से लेकर सौधर्म स्वर्ग तक मध्यलोक में अ्ंण्यात द्वीप-समुद्रों मं; और अघोरोक में मीखे, पेसे तीनों लोक म॑ं आत्मा के लिये सारमूत पक घीतरागी विशन ही है। 'दीतराग” कहने से सम्यकू चारित्र आया और “विज्ञान” कहने से सम्यग्शान थे सम्यरदर्शन आया; इस घकार घीतराग विशान में सम्यग्द्‌शन- प्ञान-चारित्र तीनां सभा ज्ञाते हैं । पेसा धीतराग विज्ञान दिधस्थरुप दे, धान दस्थरूप हे सगलस्व॒रूुप दे । पूर्ण शान व पूर्ण भानद्स्यरूप ऐसा केयल्शान मददान सारमूत है; साधक के ज्ञो आदिक दीतरागयिष्ठान दे पद भी आन-दरूप है, और घद् पूणान-दरूप मोक्ष का कारण है | देफो, प्रार्म से दो घीतरागबिशान को भोश्ष का कारण कहा, कि'तु शुभ राग को मोक्ष का कारण नदीं कद्दा। इस प्रकार मोश्त के कारणरूप ऐसे घीतरागविज्ञान को दवा खार« रूप सान के उसे में नमस्कार करता हूँ; साथघानी से अर्थात्‌ डखस तरफ के उद्यमपूर्वक नमस्कार करता हू । राग से मरिक्ष दोना मोर शुद्धस्यभाष के स मुख होना -यद निश्चय साथघानी दि, ऐसी निश्चय साधघानी से अर्थात्‌ निर्भाद भाव से में सघश को नमस्कार करता हू और वाहाय में शुभ राग के निमित्तरुप सन एचम कायदुप जियोग को साथघानी दे। सात्मा के भान घ अनुमबपूर्षक छन्नस्थ को भी घीतराग घिशान होता है; चतुथ गुणस्थान से प्रारभ द्वोकर जितना सम्पणशान है घद्द रागरद्दित दी है। --शात में रा गहों !




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