कोरी डिगरियां | Kori Digariya

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Kori Digariya by दौलतरामजी - Daulatramji

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महान भक्ति कवि पं दौलत राम का जन्म तत्कालीन जयपुर राज्य के वासवा शहर में हुआ था। कासलीवाल गोत्र के वे खंडेलवाल जैन थे। उनका जन्म का नाम बेगराज था। उनके पिता आनंदराम जयपुर के शासक की एक वरिष्ठ सेवा में थे और उनके निर्देशों के तहत जोधपुर के महाराजा अभय सिंह के साथ दिल्ली में रहते थे। उन्होंने 1735 में समाप्त कर दिया था जबकि पं। दौलत राम 43 वर्ष के थे। अपने पिता के बाद, उनके बड़े भाई निर्भय राम महाराजा अभय सिंह के साथ दिल्ली में रहते थे। उनके दूसरे भाई बख्तावर लाई का कोई विवरण उपलब्ध नहीं है।

पंडितजी के प्रारंभिक जीवन और शिक्षा के स्थान के बारे में कोई विवरण उपलब्ध नहीं है। दौलत राम। चूंकि उनके प

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इसका कुछ ऐसा असर पडा वि निम्मो घर से निकाली न जा सकी । छुट्टी समाप्त हो जाने से बलबती वा पति नौकरी पर चला गया । मां बेटी वी बनी रही । निम्मों दो साल की होगई। उसके , घूमने फिरन की सीमा गाव के सेतों तक बढ़ गई। वह स्वय ही खेतों में जाकर चर आरती । गाव के बुत्ते उसे कुछ न बहते । उनका सुकावला करना बह वालपन से ही सीसी हुई थी । निम्मो के विरद्ध शिकायतों वा अत ने हुथा। खेतों से शिवायते झाने लगी कि यह धान चर झाई। पौधों को कुचल आ्राई। इसे कसाइयो वे हवाले करो | कही-कही से यह भी सुनाई पड़ने लगा कि इस वार इसने खेत पर पंग रखा नही कि काट वर रख दंगा । बलंवती यह सुनवर वेहाल ' वह अब हरदम शक्ति रहने लगी | बौत जाने, कव क्या हो जाये ? अत में निम्मो वो कोई मार ठालेगा इस भय से उसने स्वय ही उसे जगल में छोड आने वी सोची | लोगो को णात करने के लिए दो चार बार वह्‌ उसे जगल में छोड भी झाई | पर वह क्‍या करे ? उसके घर पहुँचने से पहले ही निम्मों उसे झागे खटी मिलती । या न मिलती तो तेईस




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